१२० : 'भारतवर्षका इतिहास.... वह घण्टों विचारमें निमग्न रहने लगे। ऐसा प्रतीत होता है फि संसारकी असारता और पाप तथा बुराईने छोटी आयुमें ही उनके मनपर ऐसा प्रभाव डाला कि वह प्रभाव आयुके साथ साथ अधिकाधिक होता गया। उन्होंने सोचा कि मुझे कैसे विश्वास हो कि जिस जगतमें इतना पाप और बुराई फैली हुई है वह किसी ऐसी शक्तिका बनाया हुआ है जो पुण्यमय और सर्वज्ञ, बताई जाती है । इस ठोकरको खाकर महात्मा बुद्ध आयुपर्यन्त न संभले।'प्रचलित धार्मिक अनुष्ठानों और अन्य प्रथाओंने भी उनके हदयपर चोट लगाई। अन्तको इसी प्रयासमें राजकुमार शाक्यमुनि, अपने विवाहके दस वर्ष पश्चात् गृहस्थाश्रमको छोड़ कर साधु हो गये। विवाहके दस वर्ष पीछे उनके यहां एक पुत्र उत्पन्न हुआ। इस घटनाने मानो उन्हें निद्रितावस्थासे जगा दिया। :शाक्यमुनिने सोचा कि दिनपर दिन नये सम्पन्ध बढ़ते जाते हैं और मैं संसारके प्रेम और ममताके जालमें जकड़ा जा रहा हूँ। इससे भय हैं कि मैं भी कहीं लोगोंकी भांति पापमें न फंस जाऊँ। शाक्य मुनिका घरसे निकलना यह सोचकर उन्होंने 'और बुद्ध हो जाना। जङ्गलमें चले जाने की ठान ली। सारे राज-पाट, धन-दौलत, सुखसम्पत्ति और ऐश्वर्यको एकाएकाछोड़कर शाक्यमुनि घरसे निकल पड़े। जङ्गलों और पहाड़ोंमें जाकर ज्ञानोपार्जन करने लगे। भारतके दर्शन शास्त्रमें जो कुछ सार था उसका उन्होंने अध्ययन किया । परन्तु शान्तिन हुई। सोचा कि कदाचित् तपसे शान्ति मिले । इसलिये उन्होंने दर्शन और तस्वशानको छोड़कर गयाफे समीप उरुविल्वके चनोंमें छः वर्षतक निरन्तर घोर तप- स्या की। उसकी तपस्याकी कहानियां सुनकर लोगों के दलके 1 1
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