बौद्ध और जैन धमाका भारम्भ . किसी दूसरे व्यक्तिको ग्राह्मण वर्णमें प्रवेश न करने देते थे, परन्तु दूसरे वर्गों के लोग विद्या पढ़कर ब्राह्मण बन जाना अपना अधि- कार मानते थे। दूसरे ब्राह्मणोंने धर्मको अनुष्टानोंके ऐसे पेचीले जालमें . जकड़ रखा था कि लोगोंको सन्देह होता था कि इस कर्मः काण्डका वास्तविक धर्मसे कुछ सम्बन्ध नहीं है। तीसरे-यज्ञ-कर्मों में पशु-वध इतना अधिक होने लगा था कि सब लोगोंके मनमें घृणा उत्पन्न हो गई थी, और वे प्रश्न • करने लगे थे कि क्या धर्म के लिये इस प्रकारके बलिदानकी आवश्यकता है? चौथे-मन्त्र-यन्त्रका बहुत जोर हो गया था। लोग अपने जीवनको पवित्र बनानेका कुछ भी यत न करते थे। वे मन्त्र यन्त्र और यश-कर्म आदिसे ही ब्राह्मण देवताओं को प्रसन्न करके समाजमें प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेते थे। पांचवें-इठ-योग अभ्यास भी उसी समय जोरोंपर थे। सारांश यह कि आर्य लोगोंकी ऐसी ही अवस्था हो रही थी जब फि भारतवर्षके उस नगर ( कपिलवस्तु ) में जहां पहले सांख्य दर्शनके रचयिता कपिल उत्पन्न हुए थे, बुद्धदेवका प्रादुर्भाव हुआ। कपिलवस्तु शाप आतिको राजधानी थी और उनके राजाका नाम शुद्धोदन था। उसके घरमें कल्याण जातिकी दो रानियां थीं। इन दोनों रानियोंमेंसे एकके यहां गौतम बुद्धका जन्म हुआ।, बुद्धको शाक्यमुनि गौतम भी कहते हैं। यह अपने माता-पिताके एकलौते पुत्र थे और उनकी बड़ी भवसामें उत्पन्न हुए थे। यह जय बड़े हुए तो कोलीके राजाकी पुत्री यशोधरासे इनका विवाह हो गया। उन्हें यचपन में ही सोच-विचारका स्वभाव पड़ गया। -
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