> भारतवर्षका इतिहास : समझते थे। प्रोफेसर रिस डेविड्जको सम्मतिमें उस समय सत्तर अस्सी प्रतिशतकके लगभग लोग स्वतंत्र और स्मृद्धि- शाली थे। प्रोफेसर रिस डेविड्ज़ अपनी 'घुद्धिस्ट जातिपांतिका इण्डिया' नामक पुस्तकमें बहुतसे ऐसे उदा. भेद । हरणोंका उल्लेख करते हैं जिनमें एक वर्णमें उत्पन्न हुआ मनुष्य अपने कमसे दूसरे वर्ण में प्रविष्ट हो गया। नगरोंका उल्लेख करते हुए उक्त प्रोफेसर नगर। महोदय कहते हैं कि उस समयमें नगरोंके बड़े ऊँचे ऊँचप्राचीर बनाये जाते थे। हेवलगे अपने इतिहास में नगगें और गांवोंके मानचित्रोंका उल्लेख शिल्प-शास्त्रोंकी पुस्तकों के अनुसार विस्तारपूर्वक किया है। मकानोंका उल्लेख करते हुए कहा गया है कि वे चूने और ईट-पत्थरके बनाये जाते थे। लकड़ीका भी प्रचुरतासे उप- योग होता था। मकानोंको बहुत सजाया जाता था। कई मकान सात मंजिले यताये गये हैं। मकानोंमें गरम स्नाना. गारोंका भी उल्लेख मिलता है। चे प्रायः उसी नमूनेके थे जिसके कि आजकल तुर्की स्नानागार बनाये जाते हैं। आर्थिक उस समयकी कहानियों, ऐतियों और पुस्तकोंसे अवस्थायें। प्रोफेसर रिस डेविड्ज़की धर्मपत्नीने एक सूची उन व्यवसायियोंकी तैयार की है जो उस समय आर्य-प्रदेशमें पाये जाते थे। इस सूचीमें बढ़ई, लोहार, पत्थर छीलनेवाले, जुलाहे, चमड़े की वस्तुयें बनानेवाले, कुम्हार, संग मरमरकी चीजें बनानेवाले, रंगरेज़, सुनार, धीवर, कसाई, व्याध, हलवाई, नाई, पालिश करनेवाले, फूल बेचनेवाले, नाविक, टोकरियां बनानेवाले और चित्रकार मिले पप है।
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