महात्मा बुद्धके जन्म के पूर्वका इतिहास यतंकी स्वीकृतिके बिना ऐसा करना असम्भव था। प्रोफेसर रिस डेविड्ज़ लिखते हैं कि पुस्तकोंमें केवल तीन ऐसे उदाहरणोंका उल्लेख है। इनमेंसे एकको अवस्था में भूमिको उसके स्गमीने जङ्गल काटकर खेतीके लिये तैयार किया था। किसी अकेले भागीदारको अपनी भूमि वसीयत करनेका भी अधिकार न था। इन सब बातोंका निर्णय रवाजके अनुसार होता था। इन निर्णयों में परिवारको आवश्यकताओंका ध्यान रक्या जाता था। भूमिकी शामलातमें या गोचरभूमियोंमें किसी व्यक्तिको दाम या क्रयके द्वारा मिलकियत प्राप्त करनेका अधिकार न था। यह बताया गया है कि राजा भूमिका स्वामी नहीं था। उसका अधिकार फेवल कर लेनेका था। गांवकी आर्थिक अवस्था बहुत सीधी सादी बताई गई है। गांवमें कोई व्यकि उन अर्थों में धनाटय न हो सकता था जिन अोंमें धनाढ्य शब्द बाजकल उपयुक्त होता है। परन्तु प्रत्येक व्यक्तिके पास अपनी भावश्यकताथोंके अनुसार पर्याप्त सामग्री थी थवण्य वह सन्तोप और स्वतन्त्रतासे रहता था। उसकालमें न भूमिके मालिक थे और न कङ्गाल * गांवमें प्रायः अपराधका लेशमात्र न था। गांवसे बाहर जो डाका नादिकी दुर्घटना हो उसको रोकना फैन्द्रिक शक्तिका कर्तव्य था। पुरस्कार लेकर थम फरना बहुत धुरा समझा जाता था। प्रत्येक व्यक्तिको अपने परिवार और अपने गांवका अभिमान था। ये लोग दूसरोंकी मजदूरी करना बहुत ही अपमानजनक
- Neither landlords nor paupers.
सका ताप यह कि working for vayes' पर्वात वेतन लेकर किलोलि मजदूरी करना निन्दित रिना जता था। रमशा यह पर्थ नहीं कि म पोर महन्तको निन्दन य 6ममा नाता था।