११२ भारतवर्पका इतिहास (८) मत्स्य, जो फुरुओंके दक्षिणमें और यमुनाके पश्चिम, 1 (६) शूरसेनोंका राज्य, इसकी राजधानी मधुरामें थी। (१०) घुद्धके समयमें गोदावरीके किनारे एक वस्ती अश्मक अस्सक) लोगोंकी थी। इनको राजधानी पोतन या पोतली धी। (११) गान्धार, इसकी राजधानी तक्षशिला थी। (१२) काम्बोजोंका राज्य, इसकी राजधानी द्वारका थी। इनके अतिरिक्त दल स्वाधीन जातियोंका उल्लेख है। वे प्रजातन्त्र-सिद्धान्तोंपर शासन करती थीं। उनकी शासन- प्रणाली कई घातोंमें प्राचीनकालके यूनानी प्रजातन्त्र राज्यों के सदृश था। इन प्रजातान जातियोंमेंसे सबसे बड़ी शाफ्य, जाति थी। इसके विषयमें लिखा है कि उसका प्रबन्ध भौर विचार- सम्बन्धी कार्य एक सार्वजनिक सभामें कपिलवस्तुके समीप हुआ करता था। इसमें छोटे बड़े सभी सम्मिलित होते थे। दूसरी जातियोंके जो सन्देश और पत्र आते थे वे भी इसी प्रति- निधि सभामें उपस्थित होते थे। इन लोगोंकीरीति थी कि एक मनुष्यको एक मधिवेशनके लिये या जब अधिवेशन न होते थे ती फुछ फालके लिये प्रधान चुन लेते थे। निर्णय और विचारसम्बन्धी ( जुडीशल ) प्रबन्धके विषय में ऐतिह्य कहता है कि यो शके संयुक्त राज्योंमें फ़ौज- दारीकी अदालतोंके छः दर्जे थे। उनसे प्रत्येकको दोषीको छोड़ देनेका तो अधिकार था । परन्तु किसी एकको उसे दण्ड देनेका अधिकार म था। यदि ये छः एकमत होकर अपराधी ठहरा तो राजा धर्म के अनुसार दण्ड देता था।
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