पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१३४

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रामायण और महाभारतके समयको सभ्यता १०५ - - ५. माग। . गोतम-सूत्रोंमें राजस्वके विषयमें निम्नलिखित आदेश हैं: (१) किसानसे उपजका दसवां, आवा, या छठा भाग लिया जावे। (२) पशुओं और स्वर्णपर भाग । (३) व्यापारपर . भाग। (४) फल, फूल, औषध, मधु, मांस, घास और लकड़ीपर है। राजाकी सहायताके लिये तीन प्रकारको सभायें होती थी-धर्म-समा, राज-सभा, और विद्या-सभा। इन सूत्रोंमें न्यायके लिये बहुत ताकीद है। दीवानी और फौजदारी मुकदमोंका निर्णय करने के लिये भी आदेश लिखे हुए हैं। झूठी गवाही देना.महापाप बतलाया है । इन धर्म-सूत्रों में दत्तक पुत्र बनाने, दाय और शिक्षादिके सविस्तर नियम हैं। इन्हीं धर्म-सूत्रोंमें जहाँ वर्ण-विभागका उल्लेख है, वहां, प्रत्येक मनुष्य के जीवन के चार आश्रम अर्यात् चार भाग भी बतलाये गये हैं। पहला ब्रह्मचर्याश्रम। इसमें यालक आठ वर्षकी भव- स्थासे विद्यार्थी रूपमें प्रवेश करके कमसे कम पचीस वर्षकी अवस्थातक रहता था। इस आश्रममें बह विद्या पढ़ता था। विवाह करने या किसी अन्य प्रकारसे अपने वीर्यको नष्ट कर- नेका उसके लिये निषेध था अच्छे अच्छे भोजन भी उसके लिये निपिद्ध था। माता-पिताका घर छोडकर वनमें गुरुकुलमें रहना पड़ता था। भूमिपर सोना होता था। सारांश यह कि इस आश्रमके नियम घड़े कडे थे। इनके कारण बालक कष्ट सहन करनेके योग्य हो जाता था। उसका शरीर गुढ़ रहता था। उसका आचार शुद्ध और पवित्र होता था, और वह विद्यामें