रामायण और महाभारतके समयको सभ्यता कलायें। (क) ज्योतिष विद्या। विद्याओं और कलाओंकी जिन शाखा. विद्यायें और ओंका वर्णन हम पहले कर चुके हैं उनके अतिरिक्त इस अवसरपर कतिपय और विद्या- ओंका उल्लेख किया जाता है जो अधिक सामव है, उस समयमें पूर्णताको प्राप्त हो चुकी थीं। उस समयमें विद्यायें और कलायें बहुत उन्नत थीं। आर्यों को विज्ञानका बहुत अच्छा . ज्ञान था। ज्योतिष तो विशेष रूपसे उन्हीं. का आविष्कार थी इसमें उन्होंने विशेष उन्नति की थी। चन्द्र, सूर्य और तारागणके हिसावले आर्य लोगोंने वर्ष, मास, दिवस और राशियां निश्चित की थीं। घर्षके यारह मास थे। परन्तु चान्द्र धर्पको सौर वर्षके अनुसार करनेके निमित्त कमी कमी लौंदका महीना डाल देते थे। चन्द्रमाके मट्ठाईस नक्षत्र इन लोगोंको ज्ञात थे और उन्होंने स्वयम् अपने अवलोकनसे इनको स्थिर किया था। सारांश यह कि नक्षत्रोंकी विद्या उन्नतिक उच्चतम शिखर पर थी। छान्दोग्योपनिपदमें एक एएलपर नक्षत्र- विद्याके अतिरिक और बहुतसी विद्याओंका उल्लेप है। (ख)रेखागणित। रेखागणित (यूक्लिड ) भी भारतमें सवले पहले आविष्कृत हुया था। यद्यपि यह विद्या यूक्लिड नामके एक यूनानी विद्वानके नामसे प्रसिद्ध परन्तु अन्वेषणसे यह सिद्ध हो चुका है कि ईसाफे जन्मके पाठ सौ वर्ष पहले यह विद्या भारतीयोंको ज्ञात थी। संस्कृत भाषामें इस विद्याका उल्लेख शुल्ब सूत्रोंके नामसे किया गया है। - दशी को मक निबन्ध । i-यकर ना -बोपन दल, दूसरा ए ० १३२ ।
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