रामायण और महाभारतके समयकी सभ्यता ६४ जाता था। यह श्रुतियों और स्मृतियोंके आधारपर ब्राह्मणों और आम लोगोंके निर्णयोंके रूपमें जारी होता था। राजाके कर्तव्य ऐसे कठिन होते थे कि यदि उसके राज्यमें कोई मनुष्य युवावस्थामें मर जाय, या दुर्भिक्ष या महामारी फैल जाय तो उसका उत्तरदाता राज्यको समझा जाता था। वरन् यहांतक लिखा है कि प्रजा जो पाप करे उसका भी किसी कदर दायित्व राजापर है। शासन (गवर्नमेंट) की बनावट किस प्रकारकी थी और वह किन नियमोंपर अवलम्बित थी, इसका सविस्तर वर्णन हम किसी अगले परिच्छेदमें करेंगे। भारतीय लोग सदासे विदेशोंके साथ भीतरी और वाणिज्य व्यापार करते रहे है। इसके बहुत- बाहरी वाणिज्य। 1. से प्रमाण हमें दूसरी जातियोंके साहित्यमें मिलते हैं। रामायण और महाभारतमें भी इस बातका यथोष्ट प्रमाण मौजूद है कि भारतीय लोग पश्चिममें अरब, ईरान और इराकके साथ और पूर्वमें चीन और जापानतक व्यापार करते थे। वे नाविक-विद्यामें बड़े निपुण थे। महाभारतमें इस प्रकारको अनेक साक्षियां हैं जिनसे विदित होता है कि युद्ध-विद्या भार्योने बहुत कमाल पैदा किया था। चे यदुतसे ऐसे शस्त्रास्त्रोंको जानते थे जिनका 'सब किसीको झानतक नहीं। महाभारतका यह भाग' शस्त्रास्त्रके वर्णनसे भरा हुआ है । रामायण में भी युद्धकलाका विशेष रूपसे मुल्य है। परन्तु दोनों महाकाव्योंसे ऐसा मालूम होता है कि भार्य लोग अपने पारस्परिक युद्ध लड़नेपाली जनतापैर किसी प्रकारका अत्याचार न करते थे और प्रजा उन संग्रामों में नष्ट न होती थी। योद्धा लोग वे पाशधिक फर्मन फरले थे जो माधुनिक यूरोपीय युद्धोंफी विशेषता है। छिपकर शत्रुपर R
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