यवस्था । '.. 3 भारतवर्षका इतिहास : समझा जाता था। गुरु और शिप्यका पवित्र सम्बन्ध था और ऋषियों तथा विद्वानोंका आदर सब कोई करता था। , रामायण एक ऐसे समाजका चित्र उप- समाजकी आर्थिक स्थित करता है जो बड़ा सुखी और समृद्धि- शाली था,जो आचार और धर्मके उच्च-गाद. र्शपर स्थित था और जिसमें प्रत्येक सदस्य धर्मात्मा और कर्तव्या- नुरागी था। इन दोनों पुस्तकों में कोई भी ऐसा प्रमाण नहीं. मिलता.जिस यह मालूम होता हो कि जनता खाने पीने और पहननेकी घस्तुयोंके अभावसे अथवा दरिद्रतासे दुखी थी। कलाकौशल भी अच्छी उन्नत अवस्थामें था । रामायण और महाभारत कालमें इस राजनीतिक देशमें बड़े बड़े नगर बन गये थे। यद्यपि अवस्था। आय्यों की राजनीतिक पद्धतिको आधारशिला प्रत्येक गांव था जो अपने भीतरी विषयों में स्वतन्त्र था, किन्तु बड़े बड़े नगरों में शासनप्रणाली किसी कदर अधिक जटिल हो गई थी। महाभारतकी भीतरी साक्षीसे यह मालूम होता है कि राजा स्वेच्छाचारी न था। जय महाराजा दशरथने रामचन्द्र जीको युबराजकी पदवीके लिये चुना तो उनका यह चुनाव प्रजाकी स्वीकृति के अधीन था। अभिषेकके लिये तिथि नियत फरनेके पूर्व उन्होंने अपने चुनावको. पहले मंत्रियों और राज. कर्मचारियोंसे स्वीकृत कराया और.तत्पश्चात् सर्वसाधारणसे। हमारे पास यह कहने के लिये यथेष्ट प्रमाण है कि आर्य-शासन- पद्धति में राजा कभी स्वेच्छाचारीन था। उसका कर्तव्य था कि वह पञ्चायतके निर्णयों और राजनियमों के अनुसार कार्य करे। आर्य-शासन-प्रणाली में कानून बनानेका अधिकार कभी राजाको नहीं दिया गया। कानून सदैव राजाले ऊपर समझा
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