रामायण और महाभारतके समयकी सभ्यता U रूपसे सोचने लगे और उन्होंने भिन्न भिन्न विचारोंसे भिन्न भिन्न दर्शन बनाये। वह यात दृष्टव्य है कि विष्णुके ये दोनों अवतार जिनका अद्भुत कार्यकलाप इन पुस्तकोंमें दिया गया है, क्षत्रिय वर्णके थे और यद्यपि महाराजा रामचन्द्रजीको धम्मोपदेश कर- नेका कोई अवसर प्राप्त नहीं हुआ परन्तु श्रीकृष्ण महाराजने धर्मका उपदेश किया। उनका उपदेश इस समय लोकप्रिय हो रहा है। इसके अतिरिक्त दोनों पुस्तकोंमें ब्राह्मणों को युद्ध- विद्याका आचार्य बतलाया गया है। यदि रामचन्द्रजी तथा उनफे भाइयोंको वशिष्ठजी तथा विश्वामित्रजीने शिक्षा दी तो कौरवों और पाएडवोंके गुरु भी द्रोणाचार्य थे और चे ब्राह्मण थे। रामायण और महाभारतके कालमें भी जाति-पांतिके बन्धन अभी बहुत कड़े नहीं हुए थे, यद्यपि उनमें वैदिक कालकी सो सरलता न थी। त्रियों और पुरुषों के सम्बन्धोंमें भी अधिक परिवर्तन हुआ जान पड़ता है । महा- भारत-कालमें मुझको हिन्दू-समाजका चित्र यदुतसी बातोंसे वर्तमान यूरोपीय समाजके सदृश जान पड़ता है। यह स्पष्ट है कि त्रियों और पुरुपोंके सम्बन्धमें ऐसे कड़े नियम न थे जैसे कि ये अव हैं। पुरुष एकसे अधिक त्रिपोंसे विवाह करते थे। विषा- हिता स्त्रीय मतिरिक दूसरी स्त्रियोंसे संसर्ग हो जानेपर भी ये ऐसी घृणाकी दृष्टिसे नहीं देरो जाते थे जैसा कि आजकल देखे महाभारतके समयमें नियोगकी प्रथा थी और स्त्रियोंको स्पष्टतया अधिक स्वतन्त्रता प्राप्त थी। राज-परिवारों की स्त्रियां घोड़ोंपर चढ़ती थीं, शस्त्र चलाना जानती थीं और समा समाजोंमें सम्मिलित होती थीं। स्त्री-शिक्षाका खूब प्रचार था और गाना बजाना तथा नाचना मी पुरा न विवाहादि। जाते हैं।
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