ev: भारतवर्षका इतिहास बढ़ा दिया है कि पुस्तक स्या, एक मसोम सागर है। हिर महाभारतको बढ़े आदर और मानकी दृष्टिसे देखते हैं और इसकी कथा सुनते सुनाते हैं। सहस्रों घाँसे इसकी वा हिन्दुओंको धार्मिक और नैतिक अवस्थाको प्रभावित करत. चली आई है। विवादोंमें भी पण्डित लोग यहुधा महाभारत श्लोक प्रमाणके कामें उपस्थित करते हैं। भगवद्गीता भी महा- भारतका एक भाग है। इसमें श्रीकृष्ण और अर्जुनका रण-क्षेत्र होनेवाला कथोपकथन है। भगवद्गीता एक अतीव विलक्षण पुस्तक है भगवद्गीता। इसको हिन्दू आर्य पड़ी ही प्रतिष्ठाको दृष्टि देखते हैं। इस पुस्तकका भारम्म इस प्रकार होता है। मर्जुन रण-क्षेत्र मध्यमें जाकर अपने सारथि, श्रीकृष्णसे प्रश्न करता है कि हे कृष्णा क्या मेरे लिये उचित है कि संसार के राज्यके लिये अपने इन भाइयों, सम्बन्धियों और पितरोंसे, जो कौरवों की सेनामें है, युद्ध करू और उनके रकस अपने हाथ रंगू? श्रीकृष्ण इस प्रश्नके उत्तरमें यतलाते हैं कि आत्मा अमर उसफो कोई नहीं मार सकता। यह अनभ्वर पदार्थ है। प्रत्येक यतिका कर्तव्य है कि निष्काम भावसे अपने धम्मका पाला करे। धर्म-युद्ध में क्षत्रियको उचित है कि लड़ाई करे, चा। सामने कोई हो। जो क्षत्रिय युद्धसे विमुख होता है या रण क्षेत्रसे भागता है, यह अपने धर्मसे पतित होता है। यह पुस्तक अपनी शिक्षा, अपनी सुन्दरता, और अपने गम्भीरताकी दृष्टिसे संसारकी उन अद्वितीय पुस्तकोंमैसे.. जिनको सारा जगत् धद्धाको दृष्टिसे देखता है। इस समय संसारकी कदाचित दीको साहित्यिक मापा होगी जिसमें
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