भारतवर्षको इतिहास
- • मंच तो.पाण्डयों को एक प्रबल राजाकी सहायता मिल गई।
राजा पद उनका सहायफ हो गया। उसने धृतराष्ट्रको विवश किया कि वह आधा राज्य पाण्डवोंको दे दे। इस बॉटमें भी पाण्डवोंके साथ अन्याय ही हुआ। जंगली इलाका • उनको मिला। "पाण्डव वनको साफ करके पाण्डवोंने इन्द्रप्रस्थ नगरी क्साई। इसके खंडहर अबतक दिल्ली नगरके निकट विद्यमान हैं। फिर अपने पगक्रम और वीरतासे उन्होंने और भी बहुतसे। प्रदेश जीत लिये, और अपनी विजय तथा उत्तम राज्य-प्रबंधके । कारण ! अपने आपको राजसूययज्ञ करनेका अधिकारी बना लिया| सभी राजा महागजा इस यज्ञमें निमन्त्रित हुए। दुर्यो- धनादिमी सम्मिलित हुए । श्रीकृष्ण को प्रधानकी पदवी दी गई। अन्ततः जब यज्ञ सम्पूर्ण हो चुका तय दुर्योधनने हँसी हँसीमें एक दिन युधिष्ठिरको जूआ खेलनेपर सहमन कर लिया। धर्मात्मा युधिष्ठिर इस चालमें आ गया और जूएकी बाज़ीमें राज-पाट सब कुछ हार गया । यहाँतककी अपनी स्त्री भी दांवपर लगा दी और उसे भी हार गया। जब द्रौपदीको यह समाचार पहुचा. तो यह बहुत क्रुद्ध हुई। उसने दुर्योधनके पास जानेसे इन्कार कर दिया किन्तु दुःशासन उसको केशोसे घसीटकर राजसमामें ले माया । उपद्रव हुआ ही चाहता था कि इतनेमें बंधे धृतराष्ट्रको सवारी आ गई। उसने मध्यस्थ होकर यह निर्णय किया कि पाण्डव बारह वर्षके लिये बनमें चले जावें । थारह वर्षके पश्चात् एफ घर्ष और छिपे रहें। यदि इस तेरहवें वर्षमें दुर्योधन उनका पता न पा सके तो चौदह वर्षके आरम्भमें उनको उनका राज्य लौटा दिया जाय। लाचार पाण्डवोंको दुवारा वनमें जाफर रहना पड़ा। वाण