माप्योक महाकाव्य t कोरिकी योग्यताका परिचय देगा उसीके सापद्रौपदीका विवाह पर दिया जायगा । एक लकड़ी पर एक चर बांधा गया। इस चारके ऊपर सोनेकी एक घूमती हुई मछली थी। एक भारी धनुष उपस्थित किया गया । प्रण यह था कि जो पुरुष उस घूमतो हुई मछलोकी आंखमें बाण मारे वही द्रोपदीका पति बने। दूर दूरके देशोंसे राजा, राजकुमार, धनुर्धर, पहलवान और भत्रिय इकठे हुए। ब्राह्मणोंने घेदमत्र उच्चारण करके यश किया। राज-कन्या द्रौपदी हाथमें फूलों की माला लेकर अपने भाई धृष्ट- सुमनके साथ राजमवनसे उतरी। सब राजा और राजकुमार पारी चारी उठे और अपने भाग्य की परीक्षा करने लगे। परन्तु किसीको सफलता न हुई। कर्ण भी मागे घढा। परन्तु उसे पीछे हटा दिया गया क्योंकि वह एक कुमारीका पुत्र था । दर्शकों- की पंकि,से एक पुरुष ब्राह्मण-वेपमें आगे बढ़ा। धनुष उठाया, मौर बात करते करते लक्ष्यवेध कर दिया। चारों ओरसे चाह बाह होने लगी। द्रौपदीने चटपट जयमाल उसके गलेमें पहना दी। धीर ब्राह्मगने राज-कन्याका पाणिप्रहण किया। जो क्षत्रिय राजा मोर राजकुमार माये हुए थे। उन्होंने शोर मचा दिया किराजकन्याके साथ ब्राहग विगह नहीं कर सकता। इसका परिणाम हुआ कि ब्राह्मणने अपना वेप उतार दिया और अपनी पेशापली बताकर अपने आपको पाण्टु पुन अर्जुन प्रकट किया। इस प्रकार स्वर्पचर जीतकर जव पाण्डव अपनी माताके पास आये तो कहने लगे कि माज हमको एक उपहार मिला है। माताको कसा मालूम था कि क्या उपहार मिला है। उसने कहा कियह उपहार पांचोंका साईका माल है। इसपर माताकी •नाशाका पालन करनेके लिये पांवों पाण्डपुत्राने द्रौपदीसे विवाहकर लिया।
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१२०
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