पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/११९

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भारतवर्षका इतिहास भव द्रोणाचार्य्यने दक्षिणा मांगी अर्थात् अपने परिश्रमके 'लिये पुरस्कारकी याञ्चा की राजाने कहा, मांगिये जो मांगते है। अग्निरूप ब्राह्मणने इतने वातक जिस रहस्यको अपने उरमें छिपा रखा था उसको प्रकट कर दिया और राजा द्र.पदसे 'बदला लेनेका वर मांगा। राजा वचन दे चुका था और उस- का पालन करना धर्मा था। सारांश यह कि द्रोणाचार्याने राजा द्रपदपर चढ़ाई की और उसका आधा राज्य छीन लिया। .. . पाण्डपुत्र युवा होते जाते थे और राजा वृद्ध होता जाता घो। देशको रीतिके अनुसार यह आवश्यक था कि किसीको युवराज चुना जाय । युधिष्ठिर सबसे बड़ा था और पिताके राज्यपर सबसे पहला अधिकार भी उसीका था। अतएव चही युवराज निर्वाचित हुआ। परन्तु दुर्योधनने इस निर्वाचन को स्वीकार न किया और अपने पिताको यहकाकर पाण्डवोंको. देशसे निर्वासित करा दिया। पाण्डुपुत्र हस्तिनापुर छोड़कर वारणायत नगर में (जिसको माजकल इलाहाबाद कहते है ) जा बसे । दुर्योधनने यह सोचकर कि जबतक पाण्डव जीते हैं उनकी 'भोरसे माशङ्का परायर पनी हुई है, पाण्डवोंके रहनेफे मकानमें भाग लगवा दी। परन्तु विदुर'की कृपासे पाण्डवोंको समयपर 'पता लग गया। अपनी मातासहित एक गुप्त मार्गसे बच निकले। जिन दिनों के प्राक्षणों के घेपमें धनों में फिरते थे, पाश्चाल देशके राजाद पदने अपनी बेटी दीग्दीका स्वयंवर रचा। स्वयं घरमें उसने यह प्रण किया था कि जो पुरुष धनुर्विद्या, उच

मान कायम शिक्षण कारमें पापाय मिचा देने के लिये फोम या वेतन

न । मिष प्राचय-पूर्वक मिपा समाप्त कर लेता था तार पपने परिसमा पुरलार मांगते थे। + रिपोरोंगर पालिका को मध्य मानिसको जिकिरदर-नौति राजनीति-मामको पक्षमामारि पुटक।