.८८ भारतवर्षका इतिहास पाण्डुके पांच,पुत्र हुए । बाल्यावस्थामें ही इनके पिताका देहान्त हो गया। पाण्डवोंके अल्पवयस्क होनेके कारण. राज्यका काम धृतराष्ट्र करने लंगा। उसने अपने पुत्रों और पांचों पाण्डवोंकी शिक्षा प्रातिके लिये द्रोणाचार्यके सिपुर्द कर दिया । धृतराष्ट्र.. के पुत्र महाभारतमें कौरव कहलाते हैं। द्रोणाचार्य बड़ा विद्वान था । वह शस्त्र विद्या और युद्ध- सञ्चालनकालामें बड़ा निपुण था। वह पहले राजा द्रपद त्पश्चालकी राजसभामें रहा करता था। फिर वहांसे रुष्ट होकर यहां चला आया था,। यह राजा द्रुपदसे बदला लेना चाहता . या। इसने बड़े परिश्रम और योग्यतासे अपने शिष्योंको शिक्षा दी। पाण्डवों में युधिष्ठिर सबसे बड़ा था। यह धर्म-शास्त्र और महा-विद्या में सब भाइयोंसे बढ़ा चढ़ा था। उससे छोटा भीम मल-युद्ध और गतका खेलनेमें निपुण था। तीसरा अर्जुन धनुः विद्या और षड्ग चलानेमें अद्वितीय था। चौथा नकुल अश्य- विद्याका और पांचया सहदेव ज्योतिषका पण्डित था। सारांश यह कि यों तो पाँचोंके पांचों भाई साधारणतया योग्य, विद्वान सौर शास्त्रश थे, पर फिर भी उनमें से प्रत्येक एक विशेष काम- में नाम रखता था, · धृतराष्ट्रका ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन भीमके सदश मल-युद्ध और गतका खेलनेमें विशेष निपुण था। जय इन नवयुवकोंको .शिक्षा समाप्त हो चुकी तय उनकी परीक्षाको ठहरी। एक • शुभ दिन इस कामके लिये नियत हुआ। और बहुत बड़ा 'उत्सव रचा गया। समस्त प्रदेशकी प्रजा एक विस्तृत क्षेत्रमें राजकुमारोंके करतयं देखनेके लिये एक न हुई। स्वयं महाराजा धृतराष्ट्र मी पता पधारे । दुर्योधनकीमाता गांधारीभी गई। युधिष्ठि, भीम, $ & 9
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