पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/११०

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आयोंके महाकाव्य द . रचना है और महाभारतकी अन्तिम लड़ाईसे कलियुगका आरम्भ हुआ, जिसको आज चार हजार नौ सौ अठानवे वर्ष हो चुके। वास्तवमें निश्चयपूर्वक यह कहना कि जिन घटनाओंका इन' ग्रन्थों में उल्लेख है ये का घटित हुई और का ये नंन्य लिखें गये, असम्भव है। बङ्करेज विद्वानोंका विचार है कि जय भार्य लोगोंने पंजावको पार करके गङ्गा और यमुनाके बीचके प्रदेशमें राजगनिया प्रतिष्ठित को थीं उस समय वे घटनायें घटित हुई जिनका इन प्र.धों में वर्णन है, चाहे इनके घटित होनेके बहुत फाल पछे ये दोनों प्रन्थ लिखे गये। परन्तु इन ग्रन्योंमें उनकी रचनाकी जो कथा मिलती है वह इस विचारका समर्थन नही करती। डाकृर हएटर* महाशय लिखते हैं कि यह सम्मन है कि रामायणके कुछ भाग महाभारतके पहले के हों। हिन्दू लङ्का-रिजपके स्मारक के रूपमें प्रति वर्ष आश्विनमें दशहरेका पर्व मनाते हैं, और फिर उससे कोई पन्द्रह दिन पीछे कार्तिर मासमें धोरामचन्द्रजीके अयोध्या लौट आनेको स्मृतिमें दीपा- चलीका त्योहार करते हैं। दीपावली के उपलक्ष्यमें सब हिन्दु- मरनोंमें सफाई होती है, मकान सजाये जाते हैं और प्रत्येक मकान में प्रकाश किया जाता है। बाजारों में भी प्रकाश किया जाता है। भाई बन्दों और मित्रों-सम्बन्धियोंको मिठाई यांटी नाती है। हिन्दू-पुरुष और हिन्दू-स्त्रियां रामायणकी कथा सुनने लिये बडी उत्सुक रहता है। इस कथाया सुननी वे बड़ा पुण्य कर्म समझती है। रामायण वारमीकि मुनिकी रचना है। रामायण यह श्रीरामवन्दजी महाराजके समयका इति- क्षस हे या यों कहिये कि यह उनका जीवन चरित है । पुस्तक दखा र महाश्य धिम १६६