भारतवर्पका इतिहास पण करना यड़ा कठिन है। परन्तु कुछ भी हो, यह वैदिक कालमें कड़ा न था। वैदिक कालके साहित्यसे यह भी मालूम स्त्रियोंका स्थान। होता है कि वैदिक समाजमें स्त्रियोंका स्थान यहुत ऊंचा था। यद्यपि उनको यह स्वतन्त्रता और यह शक्ति प्राप्त न थी जो द्रविड़ लोगोंके मातृक संगठनमें स्त्रियोंको प्राप्त थी, तो भी इस बात का पर्याप्त प्रमाण मौजूद है कि विवाह एफ दुसरेकी पसन्दसे होता था और विवाहके पश्चात् दुलहिन अपने घरमें स्वाधीन स्वामिनी समझी जाती थी। यहांतक कि यदि वृद्ध माता पिता उसके साथ रहना पसंद करें तो उनको भी उस की आशा माननी पड़ती थी। हिन्दु-समाजमें इस समय स्त्रीकी जो स्थिति है यहथवनतिका चिह है। हिन्दू समाजमें ऐसा मालूम होता है कि वैदिक कालमें जहां शिल्पिोंका ग्राह्मणों के कामकी यह या पदयी थी वहां शिल्प कलाकौशल और वाज्यको भी घृणाकी : स्थान। दृष्टिसे नहीं देखा जाता था। जातिका एक बड़ा भाग इन्हीं कार्यों में लगा रहता था और वे बहुत सम्मान- की दृष्टिसे देखे जाते थे। शिल्पशास्त्रको पहुत उच्च पदवी थी। जो लोग शिल्प-शास्त्र के अनुसार यज्ञशाला बनाते थे या प्रामों, भवनों और कृषिसम्बन्धी मकानोंकी कल्पना और आलेख्य तैयार करते थे उनको ब्राह्मणकी पदवी दी जाती थी। शूद्रोंकी कोटिमें वही लोग थे जो केवल मेहनत और मजदूरी करते थे। यहुतसे यूरोपीय लोग कहते हैं कि वैदिक-यार्य एक विशेष प्रकारकी मदिरा पीते थे। उसका नाम 'सोमरस' था। 'सोम' एक वनस्पति- का नाम था आज कोई नहीं यतला सकता कि कौन सी धन- मदिरा।
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