भारतवर्षका । ७४ अनुग्रह और प्रेम वीवसे उनको अपने सामाजिक पाढ़ेमें सम्मि लित कर लिया और उनको अपना नैतिक और आध्यात्मिक शिष्य बनाकर बहुत शीघ्र समताकी पदवी दे दी। बहुतसे प्रमाणोंसे यह प्रतीत होता है कि आर्य लोगोंने भारतके आदिम निवासियोंमसे जो लोग अच्छे और शिष्ट थे उनको अपने संगठनमें सम्मिलित कर लिया और गायत्रीफा उपदेश देकर उनको द्विज बना लिया। यह धारणा सर्वथा निर्मूल है कि आर्य लोगोंने भारतके समी आदिम निवासियोंको शुद्ध धनायण । हां, यह अवश्य है कि आरम्भमें उन्होंने अपने वंशको पवित्र रखने लिये ऐसे उपाय अवश्य किये जिनसे उनकी जातिमें मिश्रण कम हो और ये अपनी सभ्यताके आदर्शसे न गिर जाय। परन्तु जिस समय द्रविड़ लोगोंने अपने पहले रीति-रवाजको छोड़कर आर्य लोगोंको नैतिक और आध्या. त्मिक प्रथायें स्वीकार कर ली तो उन्होंने उनको अति उदारतासे अपने समाज में मिला लिया और उनको उनको योग्यता तथा गुण-कर्म गोर स्वभावके अनुसार पद दिया। आरम्भमें क्षत्रिय सबसे ऊंचा गिना जाता था परन्तु ऐसा जान पड़ता है कि क्रमशः धार्मिक नेताओंको सर्वोच्च स्थान देनेकी यावश्यफताका अनुमय होने लगा ताकि ये सारी जातिके चरित्र और आध्या- त्मिकताकी रक्षा कर सकें और उनके जीवन लड़ाई-भिडाईके भयले सुरक्षित रहें। हिन्दू-शास्त्रों में इस घातका पर्याप्त प्रमाण विद्यमान है कि हिन्दू आर्योने अपने प्रारम्भिक इतिहासमें वर्ण- फो जन्मसिद्ध नहीं समझा। उन्होंने अतीव स्वतन्त्रता-पूर्वक लोगोंको अपने गुण, कर्म और स्वभावके अनुसार वंश-भेदका विचार छोड़कर भिन्न भिन्न वर्गों में भर्ती किया और फिर उनके पतित हो जानेपर उनको वहिप्कृत भी किया। ऐसा प्रतीत 1 .
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