पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/९४

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किया। सारे अफ़गानों को बुलाया; तीन दिन तक सब की दावत की और हिन्दुस्थान से जो हीरा मोती रेशम, कमख़ाब, सोना, चांदी लूट कर ले गया था चौकियों पर सजाकर सब को दिखाया। सरदारों और अमीरों का तो कहना ही क्या है उन को बड़े दाम की चीजें भेंट दी गईं पर ग़रीब अफ़गान भी कोई ऐसा न था जो उस दावत से खाली हाथ गया हो और जिसने अच्छी भेंट न पाई हो।

६—महमूद ऐसी ही रीति से लालच दिखा कर फुसलाकर पठानों को हिन्दुस्थान पर चढ़ा कर लाया था। परिणाम यह हुआ कि उसके उत्साह का समुद्र उमड़ा पड़ता था। जब जब आता उसके पांव आगे ही पड़ते थे। जहां कहीं किसी धनी, शहर या मन्दिर का पता पाता अपनी पल्टन लेकर चढ़ दौड़ता; मन्दिर ढहवा दिये, मूर्तियां तोड़ीं; पुजारियों का सैकड़ों बरस का जोड़ा बटोरा धन लूट लिया। राजपूत राजा आपस में लड़ते थे पर मन्दिरों के माल पर हाथ न डालते थे। इस कारण हज़ारों बरस से मन्दिरों में ढेर का ढेर धन इकट्ठा हो गया था। ईरानी और अफ़ग़ान इस धन को लूटने के लिये उधार खाये बैठे थे। जहां महमूद ने हिन्दुस्थान पर धावा मारने के लिये पल्टन इकट्ठी करने का हुकुम दिया यह लोग आंधी की तरह उठे और चले आये। फिर महमूद की चढ़ाइयों में पल्टन न बढ़ती तो क्या होता।

७—महमूद सब से पिछली बार १०२४ ई॰ में हिन्दुस्थान पर चढ़ आया और सोमनाथ के मन्दिर पर पहुंचा। यह गुजरात देश में बहुत पुराना और बड़ा मन्दिर था; और अपने असंख्य धन के लिये हिन्दुस्थान में प्रसिद्ध था। सिन्ध के रेतीले देश में साढ़े तीन सौ मील की यात्रा करके महमूद इस मन्दिर पर चढ़