लूट पाट शुरू की और फ़ारस और तातारवालों को इतना अवकाश न दिया कि हिन्दुस्थान पर धावा मारें। इस कारण कई सौ बरस तक हिन्दुस्थान इनकी चढ़ाइयों से बचा रहा।
(९९७ ई॰ से १०३३ ई॰ तक)
१—अब से ८०० ई॰ पहिले अफ़ग़ानी और तुर्किस्तानी जातियां भारत में उसी तरह आ रही थीं जैसे पहिले कभी आर्य यूनानी या सिथियन आये थे। इस समय अरबवालों को पूर्व और उत्तर देशों के जीतने के लिये घर से निकले ३५० बरस बीत चुके थे। तुर्किस्तान, फ़ारस और अफ़ग़ानिस्तान के रहनेवाले सब मुसलमान हो गये थे। अरबवालों के बहुत कुल उनमें बस गये थे। इन लोगों के मन में भी वही उत्साह था जो अरबवालों में था।
२—इस समय अफ़ग़ानिस्तान का बड़ा शहर गज़नी था और एक तुर्क जिस का नाम महमूद था यहां का बादशाह था। इसका बाप पंजाब के राजा जयपाल से कई बार लड़ा और उसको जीत कर गज़नी और सिन्ध के बीच का राज्य अपने आधीन कर लिया। भारत की गिनती उस समय संसार में धनी और भरे पूरे देशों में होती थी। इस के व्यापार की श्रेणी अपने पड़ोस के देशों से मिलती हुई यूरोप तक पहुंचती थी। बड़ा बड़ा महंगा सामान यहां से ऊंटों पर लदकर अफ़ग़ानिस्तान के दर्रों की राह दूर दूर देशों में जाता था। महमूद ने अपने लड़कपन ही से ऐसे व्यापारी अपने बाप के राज्य से होकर जाते देखे थे। व्यापारियों से बातें किया करता था, और वह इस से कहा करते थे कि हिन्दुस्थान में बड़े बड़े शहर हैं, और बड़े बड़े