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थे। पीछे इसका नाम सोरठ या सौराष्ट्र हुआ। यहां ४१६ ई॰ से अनुमान ३०० बरस तक वल्लभी कुल के राजा राज करते थे। जब चीनी यात्री ह्वौनच्वांग सौराष्ट्र में आया तो उसने सौराष्ट्र को बड़ा शक्तिमान राज पाया और उस समय में यहां वल्लभी कुल के राजा राज करते थे। देश भरा पुरा था और प्रजा प्रसन्न थी और दूर दूर देशों से व्यापार होता था। ७४६ ई॰ से मुसलमानों की बादशाही तक सौराष्ट्र पर राजपूतों का अधिकार रहा। लोग चालुक्य कहलाते थे और अन्हलवारा या अन्हलपत्तन जिसको अब केवल पत्तन कहते हैं इनकी राजधानी थी।

५—मालवे में विक्रमादित्य की सन्तान का राज्य रहा। इस वंश में विक्रमादित्य के पीछे सब से बड़ा राजा शीलादित्य दूसरा हुआ जिसका हाल ह्वौनच्वांग के लेखों से जाना जाता है। इनके पीछे राजपूत आये। और तब से मालवा की गिनती राजपूतों के बड़े बली राज्यों में होने लगी।

६—प्राचीन समय में उड़ैसा अंध्र राज्य के नाम से प्रसिद्ध था। ४७४ ई॰ तक यहां केशरीवंश के राजपूत राज करते थे। इनकी राजधानी भरोनेश्वर में थीं जहां उन्हों ने बड़े बड़े सुन्दर मन्दिर बनवाये। इस वंश के पहिले राजा का नाम व्यातकेशरी था। प्राचीन काल में उड़ैसे में बुद्ध धर्म प्रबल था। पर केशरियों की राजधानी के नाम से सिद्ध होता है कि उनके समय में सारे देश में हिन्दू धर्म का प्रचार था और शिवजी की पूजा होती थी केशरी राजाओं के पीछे गंगापुत्र वंश का अधिकार हुआ। यह भी राजपूत थे। ११३२ ई॰ से १५३४ ई॰ तक उड़ैसा में इनका राज रहा। गंगापुत्र विष्णु के उपासक थे। पुरी में जगन्नाथ जी का प्रसिद्ध मन्दिर इसी कुल के एक राजा का बनवाया हुआ है।

७—नर्मदा नदी से कृष्णा नदी तक दक्खिन देश में ५०० ई॰