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आप उपदेश देते फिरते थे। वह कहते थे कि ईश्वर एक है, हिन्दू मुसल्मान दोनों को उसकी बन्दगी करनी चाहिये; ईश्वर घटघटव्यापी है, मन्दिरों और मसजिदों में नहीं रहता। कबीर जी संसार के धंधों को मायाजाल कहते थे। उनका मत यह था कि जीवात्मा जब तक ईश्वर को पहिचान कर उसके प्रेम में मग्न न हो जाय उसको शान्ति नहीं मिल सकती।

कबीर

प्रसिद्ध है कि जब कबीर साहेब मरे तो हिन्दुओं ने कहा कि यह हिन्दू थे इनकी दाहक्रिया होनी चाहिये और मुसल्मानों ने कहा कि यह मुसल्मान थे इनको हम गाड़ेंगे; जब कफन हटाकर देखा तो थोड़े से फूलों को छोड़ कुछ न था। आधे फूल हिन्दुओं ने लिये और अपने तीर्थ काशी में उन पर एक छतरी बनवा दी। आधे मुसल्मान ले गये और उन्हें धूम धाम से गाड़ दिया।

चैतन्य महाप्रभु १४०६ ई॰ में जन्मे और १५२७ में मर गये। यह विष्णु के उपासक और जगन्नाथजी के भक्त थे, और इन्हीं की भक्ति का उपदेश बङ्गाले और उड़ीसा में करते रहे। यह बङ्गाली ब्राह्मण थे पर इनके मरने पर इनके सम्प्रदायवाले इनको परमेश्वर का अवतार बताने लगे। बुद्धजी की नाईं इनका भी यह मत था कि परमेश्वर की भक्ति से ऊंची और नीची सब जाति के लोग पवित्र हो जाते हैं और परमेश्वर के छोटे से छोटे जीव को मारना महापाप है।