पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/८३

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[७५]


जहां उन्हों ने वैष्णव धर्म का प्रचार किया और इस धर्म की उन्नति करने के लिये संस्कृत भाषा में कुछ ग्रन्थ भी रच डाले।

४—कुछ दिन पीछे स्वामी रामानुज दक्षिण से चले और सारे भारतवर्ष में फिरे। जहां जाते शैवमत के बिरुद्ध वैष्णव धर्म सिखाते। चोलाका राजा शैव था उसने इनको मरवाना चाहा। स्वामीजी इस पर मैसूर चले गये। यहां एक जैनी राजा थे। वह इनके उपदेश से श्रीवैष्णव हो गये। रामानुज ब्राह्मणों और ऊंची जाति के हिन्दुओं को उपदेश देते थे। इनके सम्प्रदायवाले श्रीवैष्णव कहलाते हैं और इनका गुरु कांची (कांजीवरम्) में रहता है।

रामानुज के १०० बरस पीछे इनके सम्प्रदाय में एक बड़े प्रसिद्ध महात्मा रामानन्द हुए जिन्हों ने उत्तर भारतवर्ष में विष्णु को परमेश्वर मानकर अपना धर्म चलाया। यह बनारस के रहनेवाले थे पर आस पास के देशों में बहुत घूमते थे और बहुधा नीच जातियों को उपदेश देते थे। इस सम्प्रदाय के ग्रन्थ हिन्दी भाषा में हैं। स्वामी रामानन्द के बारह चेले थे; सब के सब नीच जाति के थे

कबीर साहेब का जन्म १३८० में हुआ और १४२० में इनका देहान्त हो गया। स्वामी रामानन्द के १२ चेलों में से एक यह भी थे। इन्हों ने भी अपने गुरु के मत के अनुसार विष्णु भगवान् को परमेश्वर माना और उन्हीं के भजन का उपदेश दिया। इनके समय में मुसल्मान उत्तर हिन्द में फैल गये थे। कबीर साहेब ने हिन्दू मुसलमानों के धर्म को एक करने का बड़ा उद्योग किया।

५—कबीर साहेब जातिपांत के भेद और मूर्तिपूजा के विरोधी थे और मूर्तिपूजा को पातक मानते थे। दोनों विषयों पर