कुमारिलभट्ट, जो बड़े पण्डित थे और बिहार से दखिन में बौद्ध धर्म को हटाने और अपना धर्म फैलाने आये थे, इनके गुरु थे; इन्हों ने सारे भारतवर्ष में अपने धर्म की घोषणा की और केवल ३२ बर्ष की अवस्था में केदारनाथ तीर्थ पर जो हिमालय पहाड़ पर है परलोक सिधारे। यह शिवजी के उपासक थे और शिव और पार्वती की पूजा करते थे। पार्वती को हिन्दू लोग दुर्गा भी कहते हैं और तूरानी वंश के हिन्दू जो आर्य वंश से नहीं हैं इनको काली के नाम से पूजते हैं। दक्षिण में शङ्कराचार्यमतवाले स्मार्त के नाम से प्रसिद्ध हैं।
शङ्कराचार्य ने श्रीगिरि पर एक मठ बनाया था। यह पहाड़ी पश्चिमीय घाट का एक भाग है जो मैसूर राज्य में पड़ती है। यहां से तुंगा नदी निकलती है। स्मार्त सम्प्रदाय का गुरु अब भी इस मठ में रहता है और लाखों शैवों का आचार्य है।
शङ्कराचार्य ने तीन मठ और बनाये थे,—एक हिमालय में बद्रीनाथ पर दूसरा काठियावाड़ के द्वारका तीर्थ में और तीसरा उड़ीसा की जगन्नाथ पुरी में।
३—स्वामी रामानुज का ११५० ई॰ के लगभग एक गांव में हुआ था। वह गांव अब नहीं है और उसकी जगह अब मद्रास नगर बसा है। लड़कपन ही में इनके पिता ने इनको कांची भेज दिया जिसको आज कल कांजीबरम् (काञ्चीपुरम) कहते हैं। कांची उस समय चोल वंश की राजधानी थी। यहां के प्रसिद्ध पण्डित और विद्वानों से शास्त्र पढ़कर त्रिचनापली के पास श्रीरंगपत्तन में आ पहुंचे