भी बड़े निपुण थे। इस विद्या के बिषय में सुश्रुत की पुस्तक बड़ी प्रसिद्ध है। उसने १०० से अधिक जर्राही औज़ारों के नाम और उनकी सेवन विधि दी है। जहां इन यन्त्रों का ब्यौरा है वहां यह भी लिखा है कि इनमें से कोई कोई ऐसे तीक्ष्ण थे कि बाल को चीर कर दो कर देते थे।
७—इस समय के हिन्दू अपने सकालीन यूनानियों से अङ्कगणित और बीजगणित में अधिक ज्ञान रखते थे। हिन्दुओं को प्राचीन ज्योतिषशास्त्र की पुस्तकें जो कि अब तक प्रचलित हैं इसी समय में बनाई गई थीं। इनको सिद्धान्त कहते हैं। कहते हैं कि यह सिद्धान्त गिन्ती में अठारह थे। सब से प्राचीन सिद्धान्त् सिकन्दर के आक्रमण से कुछ ही पीछे लिखा गया था। इसमें यूनानियों का भी नाम आया है। हो सकता है कि इस ग्रन्थ के रचयिता ने यूनानियों से भी कुछ सीखा हो। एक दूसरे सिद्धान्त में बाख़र के यूनानियों और शकों का भी बर्णन है। और सिद्धान्त उस समय रचे गये थे जब बौद्ध समय की आयु पूरी होने को थी। इस समय का बड़ा ज्योतिषी आर्यभट्ट है जो ६०० ई॰ के लगभग पाटलीपुत्र में रहता था। उसका कथन है कि पृथ्वी अपने चारों ओर लट्टू की भांति घूमती है। वह चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का कारण भी ठीक ठीक जानता था।
८—व्याकरण भी बड़े परिश्रम के साथ पढ़ा जाता था और बहुत सी पुस्तकें इस बिषय पर लिखी गई थीं। मनु जी का धर्मशास्त्र जो अब मनुसंहिता के नाम से प्रसिद्ध है ईसा के जन्म के समय में सङ्कलित किया हुआ जान पड़ता है।