पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/७४

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[६६]

२—इसके राज्य का पूरा वृतान्त मिलता है। पहिले तो एक चीनी यात्री हौनच्वांग के लेख से जो कुछ काल तक उसके दर्बार में रहा था, दूसरे कवि बाण की लिखी हुई पुस्तक हर्ष चरित में। हर्ष बौद्ध मत का था पर ब्राह्मणों और हिन्दू धर्म का ऐसा आदर करता था जैसे निज धर्म का। कन्नौज में बौद्ध मत के सौ बिहार थे तो हिन्दुओं के मन्दिर दो सौ थे। ६३४ ई॰ में शीलादित्य ने एक बड़ी सभा की। इस में २१० राजा आये थे जिन्हों ने उसको अपना महाराजाधिराज होना स्वीकृत किया। इस समाज में राजा के सामने ब्राह्मण पण्डितों और बौद्ध भिक्षुओं में कई शास्त्रार्थ हुए। पहिले दिन सभा में बुद्ध जी की मूर्ति स्थापित की गई दूसरे दिन सूर्य की तीसरे दिन शिवजी की। ७७ दिन तक शीलादित्य ने सब को भोज दिया फिर अपना सारा धन, आभूषण और महल का सराजाम बौद्ध और हिन्दू धर्म के बिचार के बिना सब को बांट दिया। इसके पीछे राजसी बस्त्र भी उतार दिये और सन्यासियों का बाना पहिन लिया जैसे कि बुद्ध जी ने बाप के महल से बिदा होने के समय धारण किया था।

हर पांच बरस पीछे शीलादित्य ऐसाही करता था—गया जी से थोड़ी दूर नालिन्द में एक बहुत बड़ा बिहार था जहां १०,००० भिक्षुक धार्मिक पुस्तकों, शास्त्रों और आयुर्वेद के ग्रन्थों के पढ़ने में अपना समय व्यतीत करते थे।