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२—समुद्रगुप्त (३२६ ई॰ से ३७० ई॰ तक) बड़ा बली राजा हुआ है। यह एक बड़ी भारी सेना लेकर सारे मध्य भारत में होता हुआ धुर दक्षिण में पहुंचा और जिन राजाओं की रियासतों में होता गया उन सब को अपने आधीन करता गया। उसने उन देशों को अपने राज में तो नहीं मिलाया पर वहां से लूट का माल बहुत लाया। यह एक बड़े राजा होने के अतिरिक्त कवि भी था और बीणा बहुत अच्छी बजाता था। इलाहाबाद की लाट पर अशोक के लेख के नीचे एक लेख इसका अङ्कित कराया हुआ भी है। यह अशोक के लेख के बहुत पीछे का है। इस से जाना जाता है कि समुद्रगुप्त सारे उत्तरीय भारत का राजा था और दखिन के राजा उसको अपना महाराजाधिराज मानते थे।

गुप्त वंश के राजाओं का सम्बत ही पृथक है। यह ३१९ ई॰ से प्रारम्भ होता है। गुप्त राजा बुद्ध धर्म के अनुगामी न थे; वह वैष्णव थे और उन्हों ने प्राचीन हिन्दू धर्म को उन्नति कराने में बड़ा उद्योग किया। बहुत दिनों तक गुप्त वंश के राजाओं ने शकों का सामना किया जो झुंड के झुंड भारत में चले आ रहे थे और उनको गंगा जी की तरेटी में घुसने न दिया।

द्वितीय चन्द्रगुप्त (३७५ से ४१३ ई॰ तक) समुद्रगुप्त से भी बलवान हुआ है। उसने विक्रमादित्य की पदवी धारण की जिसका अर्थ है "बाहादुरी में सूर्य"। हिन्दू ग्रन्थों में यह इस नाम का सब से प्रसिद्ध राजा पाया जाता है। यह बड़ी भारी सेना लेकर उत्तर पश्चिम की दिशा में सिंधु नदी की घाटी, पञ्जाब, सिन्ध और गुजरात और मालवे में जहां सैकड़ों बरस से शकों को अमल्दारी चली आती थी पहुंचा और उनका देश जीत के अपने राज्य में मिला लिया।

लोगों का बिचार है कि यह वही विक्रमादित्य है जो हिन्दू