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(२) अंध्र वंश।

अंध्र आर्यों की एक जाति थी जो प्राचीन काल में गङ्गा की तरेटी से निकल कर महानदी और गोदावरी की तरेटियों में बस गई थी। यहां उसने एक राज्य स्थापन किया जिसने सैकड़ों बरस तक दखिन के पूर्वीय भाग और तिलङ्गाना पर राज्य किया। आज तक तैलङ्गी भाषा का दूसरा नाम अंध्र भाषा चला आता है। ईसा से २६ बरस पहिले जो हिन्दू राजा यहां राज करता था उसने देखा कि मगध राज बहुत शिथिल होगया है इस कारण उसने एक बड़ी सेना लेकर उत्तर की दिशा को प्रस्थान किया और मगध को जीत लिया। इसके पीछे ३०० बरस तक अंध्र वंश की एक शाखा मगध और पूर्वीय भारत और दूसरी दखिन पर राज्य करती थी। हम पहिले लिख चुके हैं कि ईसा से पहिले ४ शताब्दियों में पहिले बाख़र के यूनानियों और फिर शकों ने पंजाब और उत्तर-पश्चिमीय भारत को अपने आधीन किया था। अंध्र वंश के २४ राजाओं ने राज किया। उन्हों ने शकों को भारत के मध्य और पूर्व के भाग में घुसने नहीं दिया।

(३) गुप्त वंश।

१बुद्ध ‌धर्म के समय के अन्त में मगध में उस वंश का राज था जो गुप्त के नाम से प्रसिद्ध है। ३०० ई॰ से ६०० ई॰ तक ३०० बरस के लगभग इस वंश का शासनकाल कहा जाता है। इस वंश के दो राजा बड़े नामी हुए हैं। एक समुद्रगुप्त और दूसरा चन्द्रगुप्त—विक्रमादित्य। इस चन्द्रगुप्त के साथ विक्रमादित्य की पदवी इस कारण सम्मिलित की गई थी कि इसमें और चन्द्रगुप्त मौर्य में भेद हो जाय जो इससे ७०० बरस पहिले मगध में राजा करता था।