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और नीची जातियों के मनुष्य थे। हर एक बस्ती और गांव अपनी सब आवश्यकता की चीज़ों से भरा था, और दूसरे के आसरे न था क्योंकि इसमें प्रत्येक जाति के और प्रत्येक उद्यम के मनुष्य बसते थे। प्रजा अपने राज में और हाकिमों की रक्षा में सुख चैन से रहती थी।

(२) भारत के यूनानी राजा।

१—जब सिकन्दर भारत से लौट गया तो उसके हज़ारों यूनानी सिपाही पीछे तुर्किस्तान में रह गये। फ़ारस के यूनानी तुर्किस्तान को बाख्रर कहते हैं। यूनानी सैनिकों ने बाख़र की स्त्रियों से ब्याह कर लिया और उन्हीं के देश में बस गये। सिकन्दर के पीछे यूनानी बादशाह फ़ारस में पांच सौ और बाख़र में सौ बरस के लगभग राज करते रहे। इसके पीछे सीथियन के बड़े बड़े झुंडों ने आकर इनको तुर्किस्तान से निकाल दिया।

२—तीन सौ पचास बरस अर्थात ईसा मसीह से दो सौ पचास बरस पहिले और सौ बरस पीछे तक बाख्रर के यूनानी राजा और उसके पीछे फ़ारस के यूनानी बादशाह अफ़गानिस्तान और पंजाब के कुछ भाग पर राज करते थे। इनके नाम के सिक्के आज तक बहुधा वहां निकलते रहते हैं। इन बादशाहों में सब से प्रसिद्ध मीनाण्डर था जिसको भारतवासी लेखकों ने मलिन्द लिखा है। वह बौद्ध हो गया था। कहा जाता है कि यह बड़ा नेक राजा था। भारत के लेखकों ने ऐसा लिखा है कि यूनानी यहां के वासियों से मिल गये थे। पीछे उनका कहीं नाम तक नहीं सुनाई देता।