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पंजाब को जीत लिया। मलयकेतु चन्द्रगुप्त को आधीन न कर सका और परस्पर सन्धि कर ली गई। चन्द्रगुप्त ने पांच सौ हाथी मलयकेतु को भेट दिये, मलयकेतु ने पंजाब पर अपना अधिकार त्याग देने का प्रण किया और चन्द्रगुप्त के साथ अपनी बेटी ब्याह दी। चन्द्रगुप्त की सभा में मलयकेतु का राज-दूत भी रहने लगा जिसका नाम मेगस्थनीज़ था।

९—यूनानियों ने ३२७ बरस ईसा के पहिले जो सिकन्दर के साथ चढ़ाई की थी वह भारत के इतिहास में एक बड़ी भारी घटना जान पड़ती है। सिकन्दर के साथ विद्वान और गुणी यूनानी जो भारत में आये उन्हों ने जो बातें यहां की देखीं उन सब का हाल अपनी पुस्तकों में लिखा। उनके लिखे हुए सच्चे इतिहास तो अब नहीं मिलते हैं पर यूनानी इतिहासलेखकों ने जो बातें अपनी पुस्तकों में इनसे लिख ली थीं, अभी तक पाई जाती हैं। मेगस्थनीज़ ने भी जो सिकन्दर की मृत्यु के २० बरस पीछे पटने में राज-दूत था कुछ हाल लिखा था जो उसने अपनी आखों देखा या कानों सुना था। उसकी पुस्तक के कुछ भाग अभी तक मिलते हैं।

१०—मेगस्थनीज़ लिखता है कि भारतवासी मनुष्य जिनको उसने देखा सत्यवादी और बीर थे। स्त्रियां सीधी और पवित्र थीं। दासत्व का नाम तक न था। लोग एक दूसरे की बात पर विश्वास करते थे। कोई अपने दरवाज़े पर ताला नहीं लगाता था क्योंकि चोर और लुटेरे कहीं न थे। मुक़दमे इत्यादि होते ही न थे। बिरला ही कोई किसी पर नालिश करता था। मेगस्थनीज़ लिखता है कि उस समय हिन्दुस्थान में ११८ राजा राज्य करते थे। भारतवासियों में जो लोग गोरे थे वह ऊंची जाति के आर्य ब्राह्मण और क्षत्रिय थे और जो लोग काले थे वह शूद्र