पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/६०

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दो मन्दिर हैं जो भारत के अत्यन्त सुन्दर और बड़े प्रसिद्ध मन्दिरों में गिने जाते हैं। यह निरे संग मरमर के बने हुए हैं, जो तीन सौ मील से यहां लाया गया था। महाबीर स्वामी की मृत्यु के दो सौ बर्ष पीछे प्रसिद्ध राजा चन्द्रगुप्त के समय में मगध देश में बड़ा भारी अकाल पड़ा। उस समय बहुत से जैनी उत्तरीय हिन्दुस्थान को छोड़कर दक्षिण देश करनाटक में चले गये जिसे अब मैसूर और कनाड़ा कहते हैं। अभी तक यहां कुछ जैनी बसे हुए हैं। अब जैनियों के दो भाग हो गये थे। एक तो स्वेताम्बर अर्थात उज्ज्वल बस्त्र धारण करनेवाले दूसरे दिगम्बर जो नग्न रहा करते थे। आज दिन १५ लाख जैनी भारत के तमाम हिस्सों में बसे हुए है। बुद्ध मत की तरह जैनियों के भी साधू होते हैं। जैनी लोग दया करने का इतना बिचार रखते हैं कि जहां तक हो सकता है छोटे से छोटे जीवों की भी हत्या नहीं करते। यह भी कर्म्म की गति को मानते हैं और निर्वाण को मुक्ति समझते हैं। इनका भी यही मत है कि मृत्यु के पीछे मनुष्य की आत्मा बहुत से पशुओं और दूसरी योनियों में प्रवेश करती है और बार बार जन्म मरण के फेर में आती है। जैनी बस्ती से दूर घने बनों या पेड़ों में ढके पहाड़ों पर अपने मन्दिर बनाते हैं और इन मन्दिरों के भीतर या उनके आस पास अपने तीर्थंकरों की बड़ी बड़ी मूर्तियां रखते हैं। दक्षिण देश के कनाड़ा प्रान्त में कार्कुल स्थान में जैनियों की एक मूर्ति है जो एक ही पत्थर को काट कर बनाई गई है और ४२ फुट ऊंची है।