५—बुद्ध जी की मृत्यु के पीछे ईसा से ४७७ बरस पहिले उनके ५०० चेले इकट्ठे हुए। उनकी इच्छा यह थी कि अपने गुरु के कहे हुए वाक्यों का संग्रह करें। जब उनके समस्त वाक्य इकट्ठा कर लिये गये तो सबों ने उनको कंठ कर लिया और उनको तीन भाग में जिनको त्रिपिटक कहते हैं अलग अलग किया। पहिले पिटक में वह उपदेश हैं जो बुद्ध जी ने अपने चेलों को दिये थे। दूसरे में वह धर्म्म हैं जिनके अनुसार मनुष्य को रहना उचित है। तीसरे में बुद्ध मत के धर्म्म का वर्णन है। यह बुद्धमतवालों की पहिली सभा थी। इसके सौ बरस पीछे प्रायः ३७७ बरस ईसा से पहिले ७०० भिक्षुओं की दूसरी सभा हुई। इसमें वह मतभेद की बातें जो इस समय में उत्पन्न हो गई थीं तै की गईं। इसके २३५ बरस पीछे मगध के प्रसिद्ध सम्राट महाराज अशोक ने पटने में तीसरी सभा की। चौथी और अन्तिम सभा महाराज कनिष्क ने इसके ३०० बरस पीछे इकट्ठी की। यह शक जाति के राजा थे और उत्तर-पश्चिमीय भारत पर राज करते थे।
६—इस हज़ार बरस के समय को, अर्थात् ३०० बरस ईसा के पहिले से लेकर सन् ७०० ई॰ तक, बुद्धमत का समय कह सकते हैं क्योंकि इस काल में यह मत बढ़ते बढ़ते सब मतों से बढ़ गया था।
१—जिस समय बुद्ध जी जीते थे और अपने मत को फैला रहे थे उसी समय एक और क्षत्रियकुमार ने जिसका नाम दुर्धमान था अपना नाम महाबीर रखकर एक नया मत फैलाया, जो कि बहुत सी बातों में बुद्धमत से मिलता जुलता है। यह जिन