शान्त हुआ। उन्होंने जान लिया कि व्रत रखने से और शरीर को कष्ट देने से कोई लाभ नहीं है। लोक और परलोक में आनन्द प्राप्त करने का उपाय यही है कि मनुष्य शुद्धता से रहे, सब पर दया करे और किसी को न सताये। गौतम को विश्वास हो गया कि मोक्ष का सच्चा रास्ता यही है।
७—अब गौतम ने अपना नाम बुद्ध रख लिया। और संसार को सीधी राह बताने और शिक्षा देने के हेतु देश विदेश फिरने लगे। पहिले काशी जी गये; वहां स्त्री पुरुष सब को अपना धर्म सुनाया। तीन ही महीने ठहरे थे कि उनके ६० चेले हो गये। इन सब से उन्हों ने कहा कि जाओ और हर एक दिशा में धर्म का प्रचार करो। फिर राजगृह गये यहां के राजा प्रजा सब ने उनका धर्म ग्रहण किया। इसके पश्चात कपिलवस्तु गये जहां इनके पिता राज करते थे। घर से बिदा होते समय यह राजकुमार थे। अब जो लौट कर आये तो गेरुआ बस्त्र, हाथ में कमंडल और सिर मुंडा हुआ था । बाप, स्त्री, पुत्र और समस्त शाक्य-वंश ने उनका व्याख्यान सुना और उनके चेले हो गये। इस से ४५ बरस बीतने पर ८० बरस की आयु तक बुद्ध जो एक स्थान से दूसरे स्थान जाकर अपने धर्म का प्रचार करते रहे। इस भांति सारे मगध देश, कोशल अर्थात् बिहार और संयुक्त प्रान्त आगरा और अवध में धीरे धीरे इनका मत फैल गया।
१—बुद्ध जी का मत ऐसा अच्छा और उनका जीवन ऐसा शुद्ध था कि बहुत से मनुष्य उनके अनुगामी हो गये। क्या धनी, क्या कङ्गाल, क्या बड़ा क्या छोटा, स्त्री पुरुष, हर जाति और धर्म के