गया था दिखाई दिया और फिर उनसे किसी ने कहा, "देखो गौतम एक दिन तुम्हें भी मरना है।"
५—इसके कुछ दिनों पीछे गौतम ने जिनकी आयु अब ३० बरस की थी अपने पिता और स्त्री पुत्र को छोड़ दिया, अपने राजकीय बस्त्र उतार डाले और सिर मुंडा कर गेरुवा बस्त्र धारण कर लिया
और बन को चले गये। वह इसी की खोज करते रहे कि किस उपाय से संसार दुख और पाप से रहित हो सकता है। राजगृह के पास जो मगध की राजधानी थी दो ब्राह्मण तपस्वी रहते थे। गौतम उनके पास भी गये पर वह उनके संसार के दुख दर्द से बचने अथवा मोक्ष का कोई उपाय न बता सके। फिर पटने से दक्षिण गया के आस पास के घने बन में चले गये। वहां छ बरस बराबर तपस्या की, कड़े कड़े व्रत रक्खे और शरीर की ताड़ना की पर इस से भी उनका मनोरथ सिद्ध न हुआ। गया जी का मन्दिर इस बात का स्मारक है कि यहां गौतम ने छ बरस तपस्या की थी।
६—अन्त में वह दिन भी आया कि गौतम को शान्ति मिली। एक बड़े वृक्ष के नीचे ध्यान धरे बैठे थे कि अचानक उनके हृदय में एक प्रकाश सा जान पड़ा जिससे उनका हृदय