घोड़े के हांपने और लम्बी लम्बी सांस लेने पर ध्यान जा पड़ा, वहीं रुक गये और लज्जित होकर बोल उठे, "हाय, हाय, क्या बाज़ी के कारण इस निरपराध पशु का सताना ठीक है? बाजी जाय तो जाय पर इस घोड़े को दुख देना ठीक नहीं है।" घोड़दौड़ से अलग हो गये और घोड़े को चमकारते दिलासा देते एक ओर ले गये।
३—एक दिन वसन्त ऋतु में पिता ने कहा, "आओ बाहर चलो, देखो वृक्षों और खेतों पर कैसा जोबन आया हुआ है।" बाप बेटे धीरे धीरे सवार चले जाते थे। बसन्त तो था ही। चारों ओर बाग़ही बाग़ थे। पृथ्वी पर हरी हरी दूब उगी हुई थी खेतियां लहलहा रही थीं। वृक्ष फलों से लदे हुए थे। गौतम इन्हें देखकर प्रसन्न हुए। पर उन्हों ने देखा कि एक हरवाहा बड़ी क्रूरता से एक बैल को जिसकी पीठ में घाव है मार मार कर हांक रहा है। बेचारा पशु पीड़ा के मारे बैठा जाता है। फिर क्या देखा कि एक बाज़ एक पिड़की का मांस नोच नोच कर खा रहा है। आगे बढ़े तो देखा कि एक पिड़की मक्खियां पकड़ पकड़ निगल रही है। यह सब देख कर उनको बड़ा शोक हुआ और वह घर चले आये।
४—कुछ दिनों के पीछे गौतम ने एक स्वप्न देखा। उन्हें जान पड़ा कि एक महा बूढ़ा जो मारे निर्बलता के चल भी नहीं सकता उनके सामने है और स्वप्न ही में जैसे कोई उनसे कह रहा है, "देखो गौतम तुम भी ऐसे बूढ़े और निर्बल हो जाओगे।" फिर उन्हों ने एक महा रोगी मनुष्य को देखा जो मारे पीड़ा के कांख रहा था और फिर उनसे किसी ने कहा, "गौतम तुम भी एक दिन ऐसे ही रोगग्रसित होगे और तुम्हें भी ऐसी ही पीड़ा होगी।" फिर उन्हें एक जीवरहित मनुष्य जो बिल्कुल ठंडा होकर अकड़