(ईसा से पहिले ५५७ बरस से ४७७ बरस तक।)
१—प्राय: २५०० बरस से अधिक हुए, ब्राह्मणों के समय के पीछे कोशल की शक्तिमान रियासत के कुछ पूर्व शाक्य वंश के क्षत्रिय बसते थे। इनका बहुत छोटा सा कुल था। कपिलवस्तु इनकी राजधानी थी; शुद्धोदन इनके राजा थे। यह नगर बनारस से सौ मील उत्तर था। शुद्धोदन बड़ा प्रतापी और शक्तिमान राजा था और चाहता था कि मेरे पीछे मेरा बेटा गौतम भी ऐसा ही वीर और प्रतापी हो। उसने उन्हें शस्त्र-विद्या की सब कलायें सिखाई जैसे भाला और तलवार चलाना, धनुर्विद्या इत्यादि। गौतम जब १८ बरस के हुए तो एक परम रूपवती राजकुमारी से जिसका नाम यशोधरा था, उनका ब्याह हो गया। और ब्याह के दस साल पीछे उनके एक पुत्र भी हुआ।
२—बचपन ही से गौतम सोच बिचार में रहा करते थे। इनका हृदय बड़ा कोमल था और बहुतही मीठे बचन बोलते थे; जीव जन्तु पर बड़ी दया करते थे। आखेट को चले हैं, तीर धनुष पर चढ़ा हुआ है, चुटकी दबा ली है, कुछ कुछ धनुष भी खींच लिया है, पर यह देख कर कि भोला भाला हिरन बेखटके नन्हें नन्हें दांतों से महीन महीन दूब चर रहा है, बस कमान वहीं रख दी और सोच में पड़ गये। "हाय, हाय, इस पशु ने मेरा क्या बिगाड़ा है? इसने किसको सताया है जो मैं इसे मारूं?" ऐसा सोचकर तीर तरकश में रख लिया और घर लौट आये। घोड़दौड़ हो रही है, घोड़ा वायु को भांति उड़ा जाता है; सम्भव है कि बाज़ी जीत ले पर संकेत पर पहुंचने से पहिले जो