पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/४९

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भी भलीभांति जान गये। वर्गक्षेत्र, वृत्तक्षेत्र और त्रिभुजक्षेत्र के करणसूत्र अच्छी तरह मालूम हो चुके थे।

६—इस प्राचीन काल के हिन्दुओं ने जीवनरहस्य और उसका मूलतत्व, संसार की अस्थिरता, परमेश्वर, मनुष्य, आत्मा, भूत वा भविष्य हर विषय पर बरसों तक बड़ा ध्यान दिया; जिसका इनको ज्ञान हुआ और जो कुछ इनकी समझ में आया सब लिखते गये। इस छान बीन का परिणाम यह हुआ कि छ प्रधान मत बन गये जिसको दर्शन कहते हैं।

७—सांख्य दर्शन कपिल मुनि का रचा हुआ है। इनका यह बचन है कि हम उसी वस्तु का बिश्वास कर सकते हैं जिसका कि हमको इन्द्रियों से ज्ञान हो सकता है या जिसे हम अनुमान कर सकते हैं या जो कोई प्रामाणिक बचन हो। यह कहते हैं कि ईश्वर प्रमाणों से सिद्ध नहीं हो सकता। इनकी शिक्षा यह थी कि पृथ्वी अपने आपही प्रकृति से बनी है। प्रकृति सदा से संसार में उपस्थित है और उपस्थित रहेगी। प्रकृति अपने स्वाभाविक गुणों के अनुसार अदलती बदलती रहती है और भांति भांति के रूप धारण करती है। संसार की सारी बस्तु और दशायें इसी प्रकृति के पलटते रहने, बढ़ने और घटने से उत्पन्न होती है। यह प्रकृति के साथ पुरुष (आत्मा) को भी अनादि और अविनाशी मानते हैं। इनका कथन है कि प्रकृति और पुरुष का न तो आदि है न अन्त; यह हर काल में थे और सदा रहेंगे। मनुष्य की आत्मा कुछ काल तक एक शरीर में रहती है और अपने कर्मों के अनुसार ऊंची नीची योनि में जाती है। पुरुष प्रकृति से भिन्न है पर उसे अपना समझता है। जब मनुष्य को भेद का पूरा पूरा ज्ञान हो जाता है तो आवागमन से छट जाता है और मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।