पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/४६

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भारत के ब्राह्मणों और आर्यों ने अपनी विज्ञता, योग्यता और सभ्यता के प्रभाव से दक्खिन के लोगों को अपने आधीन कर लिया। इस समय में दक्खिनी द्रविड़ों ने भी बड़े बड़े नगर बसाये और मन्दिर बनाये। इनकी भी रियासतें थीं। विद्या और कला की भी बहुत सी बातें उन्हों ने जान ली थीं पर उत्तरीय भारत के ब्राह्मण उनसे अधिक विद्वान थे। ब्राह्मणों ने उनके धर्म और उनकी भाषाओं पर अपना सिक्का बिठाकर यह प्रामाणित कर दिया कि हम तुमसे बढ़कर हैं। इस से यह न समझना चाहिये कि द्रविड़ों ने अपना धर्म और अपने देवता सब बदल डाले। जिस तरह उत्तरीय भारत के हिन्दुओं का धर्म कुछ आर्य कुछ द्रविड़ कुछ कोल और तूरानियों के धर्म से मिल जुल कर बना था उसी तरह दक्खिनी हिन्दुओं का धर्म द्रविड़, कोल और आर्यों के धर्म से मिल जुल कर उत्पन्न हुआ। इसमें पेड़ पल्लव और नागों की पूजा का अंश द्रविड़ों के धर्म से लिया गया है।

६—जो हाल कि द्रविड़ देश के विषय में लिखा गया है वही मध्य भारत के विषय में भी कहा जा सकता है। उत्तरी भारत के ब्राह्मण और व्यापारी कुल दक्खिन में फैल गये। व्यापारी तरह तरह का माल अपने साथ ले जाते थे तो ब्राह्मण अपना धर्म, अपनी भाषा, अपने आचार और व्यवहार का प्रचार करते थे। इसी तरह धीरे धीरे सारा भारतवर्ष हिन्दू हो गया। यद्यपि हर जाति की पृथक भाषा थी फिर भी उसमें संस्कृत के बहुत से शब्दों ने भर कर लिया था। हर एक धर्म के पृथक देवता थे पर बहुत से देवता उत्तरीय भारत के पूजे जाने लगे। यद्यपि देश देश के ब्राह्मण अपने अपने यहां की भाषा बोलते थे पर वह संस्कृत के लिखने का अभ्यास रखते थे और उनके सब शास्त्र संस्कृत ही भाषा में थे।