३—जब आर्यों ने उत्तरीय भारत पर आक्रमण करना आरम्भ किया तो नित्य का लड़ाई झगड़ा रहने लगा। परिवारों के बड़े बूढ़ों को और जाति के सर्दारों को इतना अवकाश न मिलता था कि वह वेदों के मन्त्र या देवताओं की बन्दना को याद करते। इस कारण हर जाति में कुछ ऐसे मनुष्य नियत किये गये जिनका पूजा पाठ करना करानाही कर्तव्य कर्म था। इसको छोड़ वह और कोई काम नहीं करते थे। कुछ दिन बीतने पर जाति के लोग उनको बड़े धर्म्मात्मा और साधू समझने लगे। इन लोगों की एक नई जाति बन गई और वह ब्राह्मण कहलाने लगी।
४—इस समय सर्दारों या उनके सिपाहियों को खेतीबाड़ी या और किसी काम के करने का भी अवकाश न मिलता था। इस कारण जाति के बहुत से बहादुर पुरुष युद्ध के निमित्त नियत किये गये। जाति का सर्दार उनका अध्यक्ष होता था और राजा कहलाता था। होते होते यह भी एक अलग जाति हो गई जो क्षत्रिय कहलाने लगी। बहुत दिनों तक ब्राह्मण और क्षत्रिय बराबर दरजे पर रहे। पीछे ब्राह्मण क्षत्रियों से श्रेष्ठ समझ जाने लगे।
५—बचे बचाये मनुष्य जो खेतीबारी करते थे या कपड़ा बुनते थे अथवा और कोई कार्य करते थे वैश्य कहलाये। यह भारतीय आर्यों की तीसरी जाति थी।
६—चौथी जाति सब से बड़ी थी—यह शूद्र कहलाती थी। इसमें उन पहिले आर्यों को सन्तान मिली जुली थी जिन्हों ने प्राचीन भारतवासियों की स्त्रियों से व्याह कर लिया था और उन जातियों के वह मिले हुए लोग भी थे जो आर्यों के साथ रहते रहते उन्हीं के सदृश हो गये थे।
७—जो असभ्य जातियां आर्यों के साथ न मिली और जिनको आर्यों ने जीत लिया वह दास की दशा पर आ गईं और सब से