चढ़ा कर जो छोड़ा तो सीधा निशाने पर बैठा और उसी समय द्रौपदी का ब्याह हो गया।
५—जब कौरवों ने देखा कि अब पांडवों का सहायक उनका ससुर पाञ्चाल का राजा है तो उन्हों ने हस्तिनापुर का आधा राज बांट कर पांडवों को दे दिया। पांडवों ने वह पश्चिमीय भाग जिसमें यमुनाजी बहती हैं ले लिया और उसमें इन्द्रप्रस्थ की नेव डाली। जो घने बन और जङ्गल उस प्रान्त में थे वह कुछ तो काट डाले और कुछ जला दिये और उन असभ्य जातियों को जो यहां पर बसी हुई थीं निकाल कर अपना राज स्थिर कर लिया।
६—इसपर भी कौरवों से चुपचाप न बैठा गया। उन्हों ने पांडवों को बुलाकर उनके साथ पासों का खेल खेला और चालाकी से उनका राज पाट ही नहीं बरन उनकी स्त्री भी जीत ली। इन बेचारों को हस्तिनापुर छोड़ना और फिर १३ बरस तक बनवास भोगना पड़ा। तेरह बरस के पीछे उन्हों ने चाहा कि हमारा राज हमको मिल जाय। पर कौरव कब मानते थे, उन्हों ने न दिया।
७—निदान कौरवों पांडवों में बड़ा भारी युद्ध हुआ। दोनों के साथ बहुत से राजा उनके सहायक थे। श्रीकृष्ण जी पांडवों के साथ थे। यह द्वारका के राजा थे जिसे अब गुजरात कहते हैं और बड़े भारी योद्धा थे। अब हिन्दू इनको अवतार मानते हैं। दिल्ली से उत्तर-पश्चिम की दिशा में कुरुक्षेत्र के मैदान में जहां अब पानीपत बसा हुआ है अठारह दिन तक घमसान की लड़ाई हुई। कौरव हार गये और एक एक करके मारे गये और पांडव हस्तिनापुर के राज के मालिक हुए।