थी; दूसरा पाञ्चाल वंश जो कुछ नीचे उतर कर गंगा के किनारे रहता था। इसकी राजधानी कामपिल्य अथवा कन्नौज़ थी।
२—भरतवंश के राजा धृतराष्ट्र जन्म के अंधे थे। उन्हों ने अपने छोटे भाई पांडु को राज दे दिया था। इन के सौ बेटे थे जिन में दुर्योधन सब से बड़ा था। यह लड़के अपने पुरखा कुरु के नाम से कौरव कहलाते थे। पांडु के भी पांच बेटे थे और पांडव कहलाते थे। इन में से बड़े और प्रसिद्ध युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन थे।
३—सब ने राज-मन्दिर में साथ ही साथ विद्या पढ़ी और गुण सीखे; पर सदा आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे। बात यह थी कि कौरव चाहते थे कि पांडु के पीछे हम राज पावें और पांडव चाहते थे कि हम राज करें। जब पांडु के मरने का समय आ पहुंचा धृतराष्ट्र अपने सौ पुत्रों की सहायता से हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठ गया। पांडव दुखी होकर बहुत दिनों तक इधर उधर फिरते रहे कि कोई अच्छी जगह मिल जाय जिसमें वह बस जायं।
४—इस समय के पाञ्चाल के राजा का नाम द्रुपद था। उसकी बेटी द्रौपदी बड़ी रूपवती थी। उन दिनों यह रिवाज था कि एक नियत दिन पर कन्या अपना बर आप चुन लेती थी। राजा द्रुपद ने भी एक ऐसा ही दिन ठीक किया कि द्रौपदी अपना बर चुन ले। जब सब राजकुमार सभा में आकर बैठ गये तो द्रौपदी की ओर से यह कहा गया कि जो कोई मेरे पिता के धनुष से निशाने पर तीर मार देगा वही मेरा पति होगा। बहुत से राजकुमारों ने अपने बल की परीक्षा ली पर सुफल-मनोरथ न हुए। कौरवों का भी यही हाल हुआ। पर अर्जुन जो अपने भाइयों के साथ वहीं उपस्थित था आगे बढ़ा और कमान पर तीर