तोड़ डाला। सीता ने उसी समय फूलों की माला उनके गले में डाल दी, जिसका आशय यह था कि राम ही मेरे बर हैं। फिर बड़ी धूम धाम के साथ उन का बिवाह हो गया और अयोध्या में आकर महाराज दशरथ के महलों में सुख से दिन बिताने लगे।
४—कुछ दिन पीछे महाराज दशरथ को बुढ़ापे ने आ दबाया मानों यह दिखाई देने लगा कि अब हम कुछही दिनों के पाहुने हैं और वह समय आ गया कि कोई युवराज नियत किया जाय जो राज के काम काज में बढ़े राजा को सहायता करे और उसके पीछे उसकी जगह राज करे। सब यही चाहते थे कि राम युवराज हों। प्रधान मन्त्री सभासद और नगर के छोटे बड़े सब राम की बड़ाई करते थे। महाराज दशरथ ने इस सर्वप्रिय राजकुमार को बुलाया और कहा कि कल तुम युवराज बनाये जाओगे। नगर में रागरंग होने लगा, क्योंकि नगरवासी राम को जी जान से चाहते थे।
५—कैकेयी को जब समाचार मिला तो वह आग बगूला हो गई। अपने कपड़े फाड़ डाले, गहने उतार कर फेंक दिये, धरती पर लोट गईं और जब राजा आये तो उनसे मुंह से भी न बोलीं। बूढ़ा राजा कैकेयी के हाथ तो बिका हुआ ही था, उसने कैकेयी के कहने से यह मान लिया कि भरत युवराज हों और राम चौदह बरस का बनवास भोगें।
६—राजा दशरथ ने प्रतिज्ञा तो कर ली पर पीछे बहुत पछताये क्योंकि अपने प्यारे बेटे को देश बाहर करने का बिचार उन्हें काटे खाता था। अवध के लोग जो वीर और बुद्धिमान रामचन्द्र को जी से चाहते थे बहुत बिगड़े। कौशल्या ने राम को समझाया कि तुम बन को न जाओ पर राम ने एक न सुनी और कहा कि पहिले तो पिता कैकेयी को बचन दे चुके हैं दूसरे यह कि बेटे का धर्म है कि पिता की आज्ञा पालन करे। राम चाहते थे कि अकेले