असली रहनेवालों से मेल जोल हो गया इन का धर्म भी धीरे धीरे बदल गया। यज्ञ और बलिदान होने लगे और उनके विधि पूर्वक करने के लिये पुजारियों के समाज बन गये। इसी समय दो नये वेद बने एक यजुर् अर्थात यज्ञों का वेद—इसमें ऋग्वेद की वह ऋचाये हैं जो यज्ञ करानेवाले ब्राह्मण यज्ञ कराने के समय देव अराधन के लिये पढ़ा करते थे। यज्ञ की कुछ विधियां भी इस में लिखी हैं। इसे हम आर्यों की पूजा की पोथी कह सकते हैं। दूसरा सामवेद है; इस में ऋग्वद के वह मन्त्र हैं जो यज्ञ के समय एक प्रकार के यज्ञ करानेवाले पुरोहित गाया करते थे। यह आर्यों के देवस्तोत्रों का ग्रन्थ है। इन से बहुत दिन पीछे चौथा वेद बना। इस में ऐसे मन्त्र हैं जिनके उच्चारण से सब प्रकार के दुखों का निवारण होता है। इस का नाम अथर्ववेद है।
ब्राह्मण—सैकड़ों बरस पीछे जब आर्य गंगा यमुना के बीच में फैला गये और यन्न करनेवाले ब्राह्मणों की गिनती भी बढ़ी और बल भी बढ़ा तो इन्हों ने यज्ञों के विधान को बढ़ाते बढ़ाते इतना कर दिया कि वह वेदों से भी बढ़ गये। अब उन्हों ने चारों वेदों के साथ एक एक नया खंड मिलाया। यह खंड ब्राह्मण कहलाते हैं। इन में यज्ञ करानेवाले पुरोहितों के, जिनको ऋत्विक और अध्वर्यु कहते हैं, कर्म विस्तार समेत लिखे हैं। ऋग्वेद ब्राह्मण में मन्त्र पढ़नेवाले के लिये मन्त्रों के उच्चारण की विधि लिखी है। सामवेद ब्राह्मण में मन्त्रों के गाने की विधि हैं, यजुर्वेद ब्राह्मण में ऋत्विजों के कर्म लिखे हैं जो अपने हाथ से यज्ञ और हवन करते थे। अथर्ववेद ब्राह्मण में वेद के मन्त्रों की व्याख्या की गई है।
आरण्यक—इनमें से कोई कोई ब्राह्मण आरण्यक कहलाते हैं। इन में उन ऋषियों मुनियों के धर्म कर्म का वर्णन है जो घर बार त्याग कर बस्ती से दूर बनों में आश्रम बना लेते थे।