पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/२१

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मन्त्र ऐसे कण्ठ हो जाते थे कि उनका भूलना कठिन था। यही कारण है जो सैकड़ों बरस तक मन्त्र सुन ही सुनकर कण्ठ किये गये। कुछ दिन पीछे लिखने की भी रीति निकली और मन्त्र लिख डाले गये। इस मन्त्रों के संग्रह को वेद कहते हैं। वेद और विद्या की ही बात है। वेदों का समय प्राचीन काल की विद्याकलाओं का समय है। इन से हम को हिन्दुस्थानी आर्यों के बहुत कुछ पुराने इतिहास की छाया मिलती है।

६—यह लोग बहुत दिनों तक पंजाब की नदियों के किनारे सीधी सादी चाल से रहते थे। इन्हों ने बन काटकर धरती साफ़ की; खेती कियारी का डोल डाला; अनाज विशेष करके जौ, गेहूं की सुन्दर फ़सलें पैदा कीं; दिव्य देवताओं को पूजते और उनसे सब प्रकार की सहायता की आशा रखते थे। हिन्दुस्थान में आने से पहिले जब वह ठंडे देशों में रहते थे इनको भोजन बनाने और शरीर गरम रखने के लिये आग परम आवश्यक थी। यह लोग अग्निदेव की बड़ी पूजा करते थे पर जब यह पंजाब में आये और देखा कि खेती के लिये मेंह भी चाहिये तो आकाश के इन्द्रदेव की उपासना करने लगे और उनकी स्तुति करने को मन्त्र पढ़ने लगे। यह लोग यह जानते थे कि गरज इन्द्र को बोली और बिजुली उसकी बरछी है। यह बरछी जब काले मेघों की पीठ में चुभती है तो उनसे पानी निकलकर धरती पर बरसता है।

७—यह लोग यह भी मानते थे कि मरने के पीछे जीव वायु और आकाश के ऊपर एक ज्योतिर्मय लोक में पहुंचता है जहां कोई दुख नहीं है, सदा प्रकाश रहता है परम आनन्द और शान्ति छाई रहती है, मित्रों और सगों से भेंट होती रहती है। इस लोक के शासक को यह लोग यम कहते थे जिसके सामने मरने पर सब को जाना पड़ता है और वही उनके कर्मों पर विचार करता