जो चाहता था सो भेजते थे। दिखाने को यह लोग अभी तक सम्राट के आधीन थे परन्तु असल में सम्राट केवल दिल्ली का बादशाह था।
४—जिस भांति सूबेदार सम्राट की आधीनता से निकल गये थे उसी भांति नवाब सूबेदारों की आधीनता से निकल गये थे; यद्यपि अभी तक सूबेदारों के आधीन कहलाते थे। इनमें से बड़े बड़े सूबेदार और नवाब यह थे; उत्तरीय भारत में अवध का सूबेदार, और बङ्गाल और बिहार का नवाब, और दखिन में हैदराबाद का सूबेदार जो निज़ामुल-मुल्क कहलाता था, और करनाटक का नवाब।
(सन् १७०८ ई॰ से १७४८ ई॰ तक)
१—ऊपर कहा जा चुका है कि शिवाजी मरहठों को लिये हुए सारे दखिन में फिरता था और उनको लूट खसोट का पाठ पढ़ा रहा था। मरहठों ने जो देखा कि रुपया इकट्ठा करने का यह उपाय सब से सहज है तो खेती के कटते ही और वर्षा-ऋतु के समाप्त होते ही बड़े बड़े हथियारबन्द झुण्ड बांध कर निकलने लगे और मध्य भारत को रौंद डाला।
२—कुछ समय पाकर उनका हियाव ऐसा बढ़ा कि विन्ध्याचल के उत्तर में दिल्ली तक धावा मारने लगे; जहां जाते थे वहां के