पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/२०५

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भेजी। इस बार शिवाजी ने सन्देसा भेजा कि जो बादशाह मेरा कुछ राज मेरे पास रहने दे और मुझे अपनी सेना में कोई ऊंची पदवी दे तो मैं उसकी आधीनता स्वीकार करने को तैयार हूं। औरङ्गजेब ने यह बात मान ली। वह यह चाहता था कि जो किसी भांति शिवाजी मेरे हाथ आ जाय तो मैं उसे मरवा डालूं। शिवाजी दिल्ली पहुंचा और राज दरबार में हाज़िर हुआ परन्तु यहां उसके साथ ऐसा बुरा बरताव किया गया कि वह जान गया कि अब मेरा कुशल नहीं है। शिवाजी एक घर के भीतर बन्द होकर पड़ रहा और बीमारी का बहाना किया। उस घर की चारों ओर मोग़ल सैनिकों का पहरा था; फिर भी उसके साथी उसे कुशल पूर्वक एक सुरक्षित स्थान पर ले गये। निकालते समय उन्हों ने उसे एक टोकरे में बैठाकर ऊपर से मिठाई रख दी। पहरेवालों ने समझा कि यह केवल मिठाई का टोकरा है, इस कारण उन्हों ने कोई रोक टोक न की और यह निकल गया। क़ैद से निकलते ही शिवाजी ने दाढ़ी मोछ मुड़ा डाली गेरुवा बस्त्र धारण कर लिया, भभूत बदन पर मली; किसी ने न जाना कि यह कौन है; इस भांति शिवाजी फिर अपने देश में पहुंच गया।

९—औरङ्गजेब ने फिर उसको कितनी ही बार पकड़ने की चेष्टा की, बड़े बड़े लालच दिये, और बुलाया परन्तु वह उसके फंदे में न फंसा।

१०—अब शिवाजी राजगद्दी पर बैठा और वह मरहठों का राजा कहलाया। वह बड़ी भारी सेना लेकर दक्षिण की ओर चला; मदरास के पास आया परन्तु उस पर चढ़ाई नहीं की। उसने मैसूर और करनाटक के सब गढ़, जैसे जिंजी, बेलहोर, आरनी, बंगलौर और बिलहारी ले लिये; अठारह महीने के मुहिम के पीछे पूना लौट आया। जो देश उसने जीते थे उनके हाकिमों ने