उनको इतना अवकाश न था कि अपने बल को इकट्ठा करके शिवाजी को पराजित करने में लगते। परिणाम यह हुआ कि शिवाजी सबल होता गया और बीजापुर के सुलतान को उससे यह सन्धि करनी पड़ी कि अब से शिवाजी पश्चिमीय समुद्रतट का राजा माना जाय।
६—अब औरङ्गजेब भी सम्राट के पद पर पहुंच चुका था। इस मरहठे सरदार की बढ़ती को देखकर यह भी डरा और एक बहुत बली सेना देकर शाइस्ता खां को जो दखिन का सूबेदार था उसको परास्त करने के लिये भेजा। शाइस्ता खां इस भारी सेना को लेकर पूना में घुस गया। शिवाजी ने देखा कि ऐसे बली बैरी से खुले मैदान में लड़कर बिजयी होना तो असम्भव है। इस कारण उसने बैरागियों का भेस बना लिया। उसके साथ बीस जवान और थे; उन्हों ने भी यही भेस बना रक्खा था। शिवाजी उन बीसों साथियों के साथ एक रात पूना में घुस गया और जिस घर में शाइस्ता खां ठहरा था उस में घुस कर उसे मारही लिया था पर वह खिड़की की राह कूद कर निकल गया। शिवाजी उसके पीछे दौड़ा और एक हाथ तलवार का जो मारा तो उसकी अंगुलियां कट कर गिर गईं। मरहठे जिस भांति आये थे उसी भांति लौट गये परन्तु शाइस्ता खां ऐसा डरा कि पूना छोड़ कर चला गया। अब शिवाजी निडर जहां चाहता था जाता था और देश जीत कर अपना राज बढ़ाता रहा।
७—इसके पीछे कुछ सैनिक लेकर शिवाजी पश्चिमीय तट के धनी बन्दरगाह सूरत में पहुंचा; छः दिन तक नगर को लूटा। यहां अंगरेजों की कोठी थी। उन्हों ने उसकी बड़ी सावधानी से रक्षा की और शिवाजी को पास न आने दिया।
८—औरङ्गजेब ने फिर उसे दबाने को एक बड़ी भारी सेना