दस पाउण्ड सालाना किराये पर देदिया। बम्बई बहुत अच्छा बन्दरगाह था। इस कारण यह नगर बहुत बड़ा होगया और बहुत से हिन्दू यहां आकर बस गये। कुछ काल बीतने पर अंगरेज़ अपना कुल कारख़ाना सूरत से उठा कर यहीं ले आये।
शाहजहां के राज में मदरास मोल लेने के एक साल पीछे अर्थात १६४० ई॰ में अंगरेज़ों ने गङ्गा जी के मुहाने के निकट हुगली स्थान पर एक कोठी बनवाई और औरङ्गजेब के राज में उन्हों ने तीन गांव मोल लिये जो कि हुगली की अपेक्षा गङ्गा जी के मुहाने के और भी निकट थे। इनमें से एक गांव का नाम कालीघाट था। यह वही स्थान है जो अब कलकत्ते के नाम से प्रसिद्ध है। १६९० ई॰ में अंगरेज़ों ने यहां पर एक क़िला बनवाया और उसका नाम फ़ोर्ट विलियम रक्खा।
५—इनके अतिरिक्त अङ्गरेजों की और भी कोठियां थीं। पूर्वीय तट पर मदरास के दक्षिण में एक कोठी थी जो सेण्ट डेविड के किले के नाम से प्रसिद्ध थी। एक कोठी मसलीपटम, एक बङ्गाला, एक पटना और एक ढाके में थी और एक बङ्गाले के नवाब की राजधानी मुर्शिदाबाद के निकट क़ासिमबज़ार में थी।
६—फ़रांसीस भी भारतवर्ष में अंगरेज़ों के साथ ही साथ आये थे और उन्हों ने भी अपने व्यापार की कोठियां बना रक्खी थीं इनमें से बड़ी बड़ी यह थीं,—पश्चिमीय समुद्र तट पर माही, मद्रास के दक्षिण में पांडीचरी, पूर्वीय समुद्रतट पर बङ्गाले में कलकत्ते से बीस मील की दूरी पर चन्द्रनगर।
७—डच लोगों के व्यापार के स्थान भिन्न थे। उनमें से बड़े बड़े यह थे, कोचीन पश्चिमीय समुद्रतट पर, पुलीकट, अर्थात पलिया घाट, मद्रास के उत्तर में पूर्वीय समुद्रतट पर और चन्द्रनगर के पास चिंसुरा बङ्गाले में।