१६१२ ई॰ में कम्पनी ने सूरत नगर में जो मुगलराज का सब से बड़ा बन्दरगाह था एक कोठी बनाई। कम्पनी के कर्मचारी साल भर तक भारत के व्यापारियों से माल मोल लेकर कोठी में इकट्ठा रखते थे और जब उनके जहाज़ आते थे तो उनपर लाद कर यूरोप को भेज देते थे; और इङ्गलैण्ड का जो माल जहाज़ों पर आता था उसको अपनी कोठी में उतार लेते थे और बेचते रहते थे। अपने माल और प्राण की रक्षा के लिये उन्हों ने कोठी के चारों ओर एक पुष्ट दीवार बनाली थी, उसपर तोपें चढ़ा दी थीं।
२—इङ्गलिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी को इतना लाभ हुआ कि अङ्गरेजों ने और और कम्पनियां भी बनाली और भारतवर्ष के साथ व्यापार करना आरम्भ कर दिया। अन्त में लगभग सौ बरस पीछे यह सब कम्पनियां मिलाकर एक कर दी गईं। यह बात १७०० ई॰ की है। इस बड़ी कम्पनी का नाम "संयुक्त ईस्ट इण्डिया कम्पनी" रख दिया गया और इङ्गलैण्ड के बादशाह ने भारतवर्ष से व्यापार करने का पूरा अधिकार इस कम्पनी को दे दिया।
३—१६३९ ई॰ में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने चन्द्रगिरि के राजा से जो कर्नाटक में एक छोटी सी पहाड़ी गढ़ी का शासक था मदरास मोल ले लिया यह उस समय मछुओं का एक छोटा सा गांव था। अंगरेजों ने इस स्थान पर एक क़िला बनवाया और उसका नाम सेण्ट जार्ज का क़िला रक्खा। बहुत से हिन्दू यहां आकर इनकी शरण में रहने लगे और इनके साथ लेन देन करने लगे।
४—बम्बई पहिले पहिल पुरतगीज़ों के आधीन था। इङ्गलैण्ड के बादशाह द्वितीय चार्लस् ने पुर्तगाल के बादशाह की बेटी से