पानी भर आया और उन्हों ने सोचा कि कोई ऐसा उपाय करना चाहिये कि हमलोग भी इस व्यापार में साझी हों। निदान हालैंड, इङ्गलैंड, फ्रान्स, जर्मनी, डेनमार्क और स्वीडन के व्यापारियों ने अपने अपने जहाज़ भेजने आरम्भ किये। पर कुछ सफलता हुई तो केवल हालैंड, इङ्गलैंड और फ्रान्सवालों को। और किसी को कुछ लाभ न हुआ और उन्हों ने कुछ दिन में भारतवर्ष के साथ व्यापार करना बन्द कर दिया।
८—पुर्तगीज़ के पीछे भारतवर्ष में डच आये। यह यूरोप के उस छोटे देश के रहनेवाले थे जिसे हालैंड कहते हैं। अब यह लोग बल और पौरुष में बहुत घट गये हैं पर अब से ३०० बरस पहिले यह यूरोप की जहाज़ी क़ौमों में सब से चढ़े बढ़े थे और जहाज़ भी इन्हीं के सब से अच्छे होते थे। यह लोग पुर्तगीज़ से अधिक शक्तिमान थे; इस कारण इन्हों ने पुर्तगीज़ों को गोवा छोड़ और सब स्थानों से निकाल दिया और १६०० ई॰ से १७०० ई॰ तक गरम मसाले का व्यापार अपने हाथ से न जाने दिया। इनकी कोठियां कोचीन, जावा, लंका और सुमात्रा के टापुओं में भी थीं।
१—१६०० ई॰ में लण्डन के लगभग सौ सौदागरों ने मिलकर मन्सूबा किया कि भारतवर्ष के साथ व्यापार किया जाय। इस अर्थ से उन्होंने एक कम्पनी बनाई जिसका नाम "इंगलिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी" था। कम्पनी ने इलीज़बेथ से जो उस समय इंगलिस्तान की रानी थी यह आज्ञा ले ली थी कि भारतवर्ष को जहाज़ भेजे। अकबर उस समय भारत का बादशाह था।